इस पाठ का शीर्षक 'दु:ख का अधिकार' कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।
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इस पाठ का शीर्षक 'दु:ख का अधिकार' पूरी तरह से सार्थक सिद्ध होता है क्योंकि यह अभिव्यक्त करता है कि दु:ख प्रकट करने का अधिकार व्यक्ति की परिस्थिति के अनुसार होता है। ... गरीब बुढ़िया और संभ्रांत महिला दोनों का दुख एक समान ही था। दोनों के पुत्रों की मृत्यु हो गई थी परन्तु संभ्रांत महिला के पास सहूलियतें थीं, समय था।
इस पाठ का शीषाक 'दु:ख का अनधकार' पूरी तरह से साथाक नसद्ध होता है क्योंकक यह अनभव्यि करता है कक दु:ख प्रकट करने का अनधकार व्यनि की पररनस्थनत के अनुसार होता है। यद्यनप दु:ख का अनधकार सभी को है। गरीब बुकढ़या और संभ्ांत मनहिा दोनों का दुख एक समान ही था। दोनों के पुत्रों की मृत्यु हो गई थी परन्तु संभ्ांत मनहिा के पास सहूनियतें थीं, समय था। इसनिए वह दु:ख मना सकी परन्तु बुकढ़या गरीब थी, भूख से नबिखते बच्चों के निए पैसा कमाने के निए ननकिना था। उसके पास न सहूनियतें थीं न समय। वह दु:ख न मना सकी। उसे दु:ख मनाने का अनधकार नहीं था। इसनिए शीषाक पूरी तरह साथाक प्रतीत होता ह