इस पाठ का शीर्षक 'दु:ख का अधिकार' कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए
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यशपाल जी के द्वारा लिखित पाठ "दुःख का अधिकार" का शीर्षक बहुत ही सार्थक है क्योंकि यह पाठ हमे हमारे समाज की सच्चाई से अवगत कराता है। जहां अमीर लोग अपना दुःख मना सकते है, गरीब के पास इतना भी अधिकार नहीं होता है कि वह अपना दुःख मनाए और रोने बैठ जाएं क्योंकि उसके ऊपर इतनी जिम्मेदारियां रहती है कि वह दुःख नहीं माना सकता।
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