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Explanation:
आज बहुत जोशोखरोश के साथ विद्यालय के लिए तैयार हुई ।लंबी छुट्टियों के बाद एक शिक्षक के लिए स्कूल जाना ठीक ऐसे ही होता है जैसे एक किसान अपने खेत की ओर जा रहा हो । तिस पर भी सरकारी विद्यालय !! निजी स्कूलों सी बसें नहीं होती जो बच्चों को उनके घरों से ले कर आ सकें ।यहाँ बच्चे स्वयं आते हैं । शांति हुई यह देख कर कि स्कूल में सब चीजें यथावत थी __पेड़ -पौधे, श्यामपट्ट, डेस्क- बेंच सब अपनी जगह । विद्यालय एकदम साफ सुथरा ।
परंतु एक बात सदैव की भांति इस बार भी अखरी , वह है छुट्टियों के बाद स्कूल की शांति ! विद्यालय में प्रवेश करते ही जब कोई आपको गुड मॉर्निंग, मैडम! , नमस्ते मैम! नहीं कहता ;कोई आपका स्वागत करने वाला नहीं होता तो वहां ऐसा ही प्रतीत होता है जैसे बिन बुलाए बाराती । सदा छुट्टियों के पहले दिन मुझे ऐसा ही माहौल मिला है ।छुट्टियों के बाद एक बात सदैव अखरती है वह है बच्चों का नगण्य होना । ऐसा क्यों होता है सरकारी विद्यालय के बच्चे छुट्टियों के बाद भी छुट्टी पर होते हैं? ऐसा क्यों होता है उन्हें जगाने शिक्षकों को घर घर जाना पड़ता है ।
सदैव यही होता है चाहे वह जून की छुट्टियां हो या वह सर्दियों की छुट्टियां ।माता पिता कब जागृत होंगे? शायद तब जब वे साक्षर हों । सरकारी विद्यालय में बच्चों का एक सबसे बड़ा ड्रॉबैक है कि वे अधिकतर उन घरों से आते हैं जहां माता-पिता निरक्षर है या बहुत कम पढ़े लिखे ।
अभी भी हमारे देश में बहुतेरे ऐसे क्षेत्र है जहां लोग बिल्कुल जागरुक नहीं ।उन्हें नहीं पता शिक्षा का महत्व_?? मेरी अपील मेरा संदेश है उन संस्थाओं से जो देश को जगाने का काम करते हैं कृपया घर घर जायें , माता पिता को जागरूक करें, उन्हें बताएं कि शिक्षा उनके बच्चों के लिए कितनी महत्वपूर्ण है ।ऐसे क्षेत्र जहां पर माता-पिता आंशिक पढ़े-लिखे या निरक्षर है उन क्षेत्रों में प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम की शुरुआत की जानी चाहिए । जोर शोर से की जानी चाहिए क्योंकि पढ़े-लिखे माता पिता ही अपने बच्चे के भविष्य के प्रति जागरुक होंगे ।’कौन सी नौकरी मिल जागी’, ‘यो तो पढ़सै ही ना.. ‘___ ऐसी बातें आने वाली पीढ़ी को दिग्भ्रमित करती हैं ।
माता-पिता प्रथम गुरु होते हैं । यदि वही बच्चे के भविष्य के हेतु संजीदा नहीं होंगे तो फिर कौन होगा?? ऐसी समस्या हर जगह है ।मैं ऐसा नहीं कह रही हूं ।यह भारत के उन क्षेत्रों की बात है जो इलाके निरक्षर लोगों के हैं । यदि मेरा संदेश कहीं जाता है तो मैं यही कहूंगी ऐसे गांव को चिन्हित करें और उनमें माता पिता को जागरुक बनाने में अपनी मदद करें ।
श्री अब्दुल कलाम आजाद को यदि उनके माता-पिता ने आगे बढ़ने की शिक्षा न दी होती तो वे एक वैज्ञानिक एक राष्ट्रपति हरगिज़ नहीं होते ।पिछड़े हुए क्षेत्रों में माता-पिता की जागरूकता के लिए एक मंच निश्चित ही जरूरी है ।आईये नव भारत के निर्माण में अपना योगदान दें ।कृपया लोगों को जागरूक कर देश की नींव मजबूत करने में हमारा योगदान दें ।पढ़ेगा तभी तो बढ़ेगा भारत ।