Hindi, asked by priyanshu5290, 2 months ago

इस रात के अंधेरे को दूर करने के लिए दयानंद ने क्या किय​

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Answered by sameerkhan1212
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स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 में गुजरात राज्य के काठियावाड़ जिले के टंकारा गाँव में हुआ। मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण उनका नाम मूलशंकर रखा गया।

मूलशंकर बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। कहा जाता है की दो वर्ष की आयु में ही उन्होंने गायत्री मंत्र का शुद्ध उच्चारण करना सीख लिया था। घर में पूजा-पाठ और शिव-भक्ति का वातावरण होने के कारण भगवान् शिव के प्रति बचपन से ही उनके मन में गहरी श्रद्धा उत्पन्न हो गयी थी। कुछ बड़ा होने पर पिता ने मूलशंकर को घर पर ही शिक्षा देनी शुरू कर दी। पहले उन्होंने मूलशंकर को धर्मशास्त्र की शिक्षा दी। उसके बाद मूलशंकर की इच्छा संस्कृत पढने की थी, इसलिए वे संस्कृत की शिक्षा देने लगे। चौदह वर्ष की आयु तक मूलशंकर ने सम्पूर्ण संस्कृत व्याकरण, `सामवेद' और 'यजुर्वेद' का अध्ययन कर लिया था।

टंकारा गाँव में एक शिव-मंदिर था। एक बार शिवरात्री के दिन मंदिर में रात्री जागरण चल रहा था। अन्य शिवभक्तों के साथ मूलशंकर भी मंदिर में रात्री-जागरण कर रहे थे। देर रात तक जागरण के कारण अन्य भक्तों की पलकें जब बोझिल होकर झपकने लगी, तब भी मूलशंकर भगवान् शिव के व्रत का पालन सख्ती से कर रहे थे। अपने पिताजी से उन्होंने भगवान् शिव की कथा पहले ही सुन राखी थी। उन्हें मालूम था की सो जाने पर व्रत खंडित हो जाता है और उसका फल भी नहीं मिलता, इसलिए वे बार-बार अपनी आँखों पर पानी के छींटे मार रहे थे ताकि उन्हें नींद ना आये। उसी समय एक घटना घटी। एक चुहिया शिव की मूर्ति पर चढ़कर वहां चढ़ाया हुआ प्रसाद खाने लगी। यह देखकर मूलशंकर को बड़ा आश्चर्य हुआ। उनके मन में तरह-तरह के प्रश्न उठने लगे। वह भागकर अपने पिता के पास गए और उनसे कहने लगे, " पिताजी, भगवान शिव की मूर्ति पर एक चुहिया चढ़ गयी है। वह उनके प्रसाद को खा रही है। आप तो कहते थे की महादेव चेतन हैं। अगर वे चेतन होते तो उन पर चढ़कर चुहिया उनका प्रसाद कैसे खा सकती थी?" पिताजी उस समय नींद में थे, इसलिए उन्होंने जल्दी में कह दिया, "बेटा! असली शिव तो कैलाश पर्वत पर रहते हैं। जो सच्ची भावना से उनकी मूर्ति की पूजा करता है, उस पर शिवजी प्रसन्न हो जाते हैं।" मूलशंकर को अपनी शंका का उपयुक्त समाधान नहीं मिला। उन्हें लगा की शिवजी की मूर्ति पत्थर मात्र है। इस पत्थर में शिव नहीं हो सकते। यही सोचकर मूलशंकर ने मूर्ति पूजा का विरोध करने का निश्चय कर लिया।

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