Hindi, asked by srthehero2008, 1 month ago

इस साल हिंदी की कक्षाओं में आपने बहुत कुछ नया सीखा। आपने जो कुछ भी जाना या सीखा उसे बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए। पत्र में यह भी बताइए कि आप अगली कक्षा में हिंदी की कक्षा में क्या सीखना चाहते हैं?

Answers

Answered by aarunya13
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मेरे प्रिय साथियों,

मुझे यकीन है आप सभी कोरोना महामारी के चलते बच्चों की शिक्षा को लेकर बहुत चिंतित होंगे. भारत में लगभग 25 करोड़ बच्चे पहली से 12वीं तक 15.5 लाख स्कूलों में पढ़ते हैं. इनमें 70% स्कूल सरकारी हैं. विश्व भर में कोविड-19 से बचाव के लिए लोगों के किसी भी जगह इकठ्ठा होने पर पाबंदी लगा दी गयी और ज़ाहिर सी बात है स्कूलों और आंगनबाड़ियों को भी बंद कर दिया गया.

स्कूलों के बंद हो जाने पर बच्चे, उनके अभिभावक, शिक्षक, प्रशासन और गैर-सरकारी सामाजिक संस्थाएं एक नए प्रश्न से जूझने लगे हैं: अब बच्चे सीखेंगे कैसे? या शायद ज्यादा उपयुक्त वाक्य हो: अब हम बच्चों को सिखाएंगे कैसे? (यहां पर मुख्य रूप से स्कूली शिक्षा की बात होती दिखाई दे रही हैं) इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण प्रश्न हैं कि बच्चों पर इस लॉकडाउन का शारीरिक और मानसिक रूप से क्या प्रभाव पड़ेगा? ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में ये प्रभाव अलग होंगे या एक जैसे? पर इस तरीके के गहरे सवाल पर फिलहाल चर्चा कम है.

सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं की तरफ से तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिली है. चूंकि लॉकडाउन की वजह से ज़्यादातर लोग अपने-अपने घरो में सिमट कर रह गए, ऑनलाइन माध्यम को आज़माने की एक तूफानी लहर दौड़ी. कोई इस माध्यम का प्रयोग कर पाठ पढ़ाने लगा, कोई कहानी सुनाने लगा तो कोई गणित के खेल खिलाने लगा.

क्या आपको पता है कि यूट्यूब पर इतने वीडियोज़ हैं कि बिना पलक झपके अगर आप लगातार देखते रहें तो सारे वीडियोज़ देखने में 60000 साल से भी ज्यादा लगेंगे. खैर, फिर भी नए वीडियो बनाने की ज़रुरत पड़ी और बहुतायत में लोगों ने बनाई और बना ही रहे हैं.

मैंने भी बनाई. खूब कहानियां पढ़ी और सुनाई. लोगों ने देखी और बच्चों को मज़ा आया. थोड़ा बहुत शायद कुछ सीख भी लिया हो. मैंने लॉकडाउन सुनते ही यह करने का निश्चय कर लिया था और इसके पहले दिन से ही यूट्यूब पर वीडियोज़ पोस्ट करना शुरू कर दिया. यह मेरी बिना सोची-समझी प्रतिक्रिया थी. चूंकि मैं पुस्तकों और पुस्तकालयों से बेहद प्यार करता हूं (पुस्तकालय-स्कूल व सार्वजनिक-बंद होने की वजह से बच्चों को पुस्तकें पढ़ने का मौका नहीं मिल रहा है) सो मैंने सोचा कि इन्टरनेट के माध्यम से बच्चों को कहानियां सुनाऊंगा. और लगभग 40 दिनों में मैंने यह समाप्त भी कर दिया. मुझे लगता है पूरे देश में यह शिक्षा के नज़रिए से देखें तो सबसे तेज़ प्रतिक्रियाओं में से एक रहा होगा.

हालांकि ये बात जल्द ही सबकी नज़र में आ गयी कि भारत के ज़्यादातर बच्चों के पास या तो कोई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे मोबाइल व कंप्यूटर नहीं हैं या फिर इन्टरनेट की बड़ी समस्या है. घर पर मोबाइल होने का कतई मतलब नहीं कि बच्चा उसमे वीडियो देख सके और कुछ सीखे-पढ़े. बहुत से गांवों में तो बिजली भी अपने मनमर्जी आती-जाती है.

मेरी यूट्यूब पर सुनाई-पढ़ी कहानियां भी शहरी बच्चों तक ही पहुंच पाई. ख़ास करके उन बच्चों तक जिनके मां-बाप इस बदलाव के चलते अपने बच्चों को मोबाइल वगैरह खरीद कर दे रहे हैं. मैं पहली लड़ाई ही हार गया. जिन बच्चों को मैं 5 साल से जानता हूं उन तक ही नहीं पहुंच सका.

कुछ समझदार लोगों ने ये बात पकड़ ली और ऑफलाइन तरीके पर भी सोचना शुरू किया गया. इसपर मैं बाद में आऊंगा.

हम सुकमा जिले में काम करते हैं और लगभग 5 सालों से यहां रह रहे हैं. इतना तो जानते हैं कि बच्चों के पास मोबाइल नहीं है.पालक के पास इक्का-दुक्का मिल जाएगा. युवा पीढ़ी के पास डब्बा फोन मिलेगा और एक-आध के पास टच स्क्रीन. पर उससे बड़ी बात ये है कि ज़्यादातर गांव में नेटवर्क नहीं पकड़ता है और अगर पकड़ भी ले तो बहुत कमज़ोर. इन्टरनेट उपयोग कर पाने के लिया अच्छे नेटवर्क सिग्नल की ज़रुरत पड़ती है जो रोड से जुड़ते कुछेक गांवों में ही संभव है.

ये तो पक्का था कि यहां कोई ऑनलाइन कार्यक्रम नहीं चलने वाला. अगर कोई चलाने का दावा करे तो उसे मेरा सलाम. कार्यक्रम चलाने का ये मतलब नहीं कि मेरे पास महंगा मोबाइल है तो मैं किसी गांव जाकर कभी-कभार एक-दो वीडियो बच्चों को बैठाकर ज़बरदस्ती दिखा दूं. पर हां! जिनके पास सम्पूर्ण सुविधा है उन लोगों तक तो हमेशा ही पहुंचा जा सकता है इसलिए इन ऑनलाइन कार्यक्रमों से कुछ-न-कुछ गांव के बच्चे फायदा उठा ही रहे होंगे. बस कंटेंट अच्छा होना चाहिए. सुकमा जैसे हज़ारों गांव हैं जहां ऑनलाइन कार्यक्रम चलाना बेतुकी बात है. और यह कहने के लिए मुझे आंकड़ा दिखाने की कोई ज़रुरत नहीं है. अगर आप भारत को ज़रा भी समझते हैं और थोड़ा बहुत घूमे हैं तो आप इस तरीके का अंदाजा सटीक तरह से लगा सकते हैं.

प्रतिक्रिया की बात हो रही है तो यह भी हुआ कि कुछ राज्य सरकारों ने ऑनलाइन शिक्षा पोर्टल लॉन्च कर दिया. अब राज्य सरकारों को केंद्र सरकार के सामने चमकने के लिए कुछ तो करना ही था. शिक्षकों ने धड़ा-धड़ घर बैठे वीडियो वगैरह तैयार कर अपलोड कर दिया और लो! ऐसा कीचड़ आपने शायद ही कहीं देखा हो. इतने घटिया वीडियो तैयार किए गए कि बच्चा देखकर कहीं मोबाइल ना तोड़ दे. कोई बिस्तर पर लेटे पन्ने पलटता हुआ कुछ बडबड़ा रहा था तो कोई पुस्तक में दिए किसी पाठ को रेलगाड़ी की तरह तेज़ रफ़्तार में पढ़ता ही चला जा रहा था.लेकिन सोचने वाली बात यह है कि कितने ही बच्चे होंगे जो इन ऑनलाइन पाठों को देख-सुन पाएंगे? एक ज़रूरी बात यह है कि यह सब कुछ सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए एक प्रयास है. गांव के तो ज़्यादातर बच्चे इन्हीं स्कूलों में जाते हैं. शहर का एक हिस्सा जो कई हद तक उत्पीड़ित और मजबूर होता है वही सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को भेजता है.

Answered by sharmaprakriti1312
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HOPE THIS WILL HELP YOU DEAR!

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