इस संसार की वास्तविक सिथति कैसी है?
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राधानाथ स्वामी का कहना है कि हमें अन्य जीवित प्राणियों के साथ अपने जीवन और संबंधो का निर्माण इस सिद्धांत पर करना चाहिए कि हमारे चारों ओर की हर चीज पवित्र है. जिस संसार में हम रहते हैं, उस संसार के तीन आधारभूत दृष्टिकोण है.
पहला दृष्टिकोण भौतिकवाद का है जिसमें लोग इस संसार को वास्तविक रूप में देखते हैं. दूसरा वह है जिसमें दुनिया पूरी तरह से एक भ्रम है और तिसरा तीनों दृष्टिकोणों मे सबसे बढ़िया है और जो यह है कि संसार भगवान की पवित्र संपत्ति है.
यह वास्तविक है लेकिन यह प्रत्यक्षीकरण में अस्थायी है. अब यह अवधारणा कि वास्तविकता में संसार ही केवल एक सत्य है, यह हमारे चेतना को सोचने की इजाजत देता है. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि जो हम चाहते हैं वो जब तक हम पाते नहीं, तब तक हम क्या करते हैं.
अगर हम लोगों को दुख देते हैं, नैतिक मूल्यों और नैतिक सिद्धांतो को कुचल कर पैसा, प्रसिद्धि, सत्ता, कामुकता और भावनात्मक सुख पाते हैं तो यह सब यह सब उचित है. क्योंकि कहा गया है, ‘खाओ पियो और मगन रहो क्योंकि शायद कल आये ही नहीं.
’ जब हम इस बात पर विश्वास करते हैं कि संसार ही केवल एक वास्तविकता है तो हमारी तथाकथित नैतिक सिद्धांत कमजोर हो जाते हैं. उसके बाद हम फिर लालच, ईर्ष्या, वासना, क्रोध, अहंकार और भ्रम जैसी भावनाओं से पीड़ित हो जाते हैं.
दूसरे सिद्धांत के अनुसार संसार कुछ नहीं बल्कि एक भ्रम है. वास्तविकता में इस संसार का कोई अस्तित्व नहीं है. सच वास्तविक है पर पूरा संसार एक भ्रम है. जो ऐसा सोचते हैं उनके लिए मौत के बाद मुक्ति के बारे में सोचने के लिए यह एक अच्छी प्रेरणा है क्योंकि अगर दुनिया ही एक भ्रम है तो यह बात मायने नहीं रखती कि हम जीते हैं या मरते हैं.
बस यह मायने रखता है कि जितनी जल्दी संभव हो, हमें इस संसार से मुक्ति मिल जाए. आज संसार के पर्यावरण और पारिस्थितिकी की स्थिति अधिक संकटपूर्ण है. अगर हम अपने चारों ओर के पर्यावरण के संकट को देखें तो ‘यह सिद्धांत कि दुनिया एक भ्रम है’ का महत्व होगा.
हमें किसी और दृष्टिकोण से देखना चहिए जैसे कि किसे इस संकट की परवाह है क्योंकि इसका तो अस्तित्व ही नहीं है. अगर यह दुनिया भ्रम है तो कोई भी पानी और हवा को गंदा करे, कोइ फर्क नहीं पड़ता. हमारी प्रेरणा तो इस सनकी, दूषित और दंड़ित दुनिया से मुक्ति पाना है और यह बात मायने नहीं रखती कि हम पीछे छोड़कर क्या जाते हैं क्योंकि यह संसार तो एक भ्रम है.
हमारा कर्म केवल मुक्ति पाने के लिए है. श्री चैतन्य महाप्रभु, वल्लभाचार्य, रामानुजचार्य और माधवाचार्य ने श्रीमद भगवद गीता और भगवद गीता में वैष्णव धर्म के सिद्धांत में जो सिखाया है उसकी अलग ही व्याख्या है.
ईसा उपनिषद के अनुसार उन्होंने ओम पूर्णम् आदा पूर्णमिदम् सिखाया है. परम सत्य यह है कि जो भी अस्तित्व में है उन सबका स्रोत है. यह संपूर्ण और उत्तम है और परम सत्य से उत्पन्न होने वाली हरेक वस्तु संपूर्ण और उत्तम है.
भौतिक संसार और आध्यात्मिक दुनिया दोनों कृष्ण के विचार हैं. कृष्ण भगवत गीता में कहते हैं कि, ‘सर्वलोका महेश्वरम’ जिसका अर्थ है, ’संसार भगवान की संपत्ति है. ’ अगर हम इस दृष्टिकोण से देखते हैं तो हम लालच, ईर्ष्या, वासना और क्रोध से मुक्त हो जाते हैं क्योंकि हम समझ जाते हैं कि हम स्वामी नहीं बल्कि रखवाले हैं.
अगर हम किसी को अच्छा करते देखते हैं तो हम उसके अच्छे भाग्य का जश्न मनाते हैं क्योंकि हम मानते हैं कि हम सब भाई और बहन हैं. हम सब भगवान की संतान और केवल आत्मा हैं. शोषण करना स्वार्थी और अहंकारी दिल के रोग का लक्षण है.
करूणा उस व्यक्ति का लक्षण है जिसने वास्तविकता में तृप्ति पा ली है. हमें अपने जीवन और संबंधों का निर्माण अन्य प्राणियों के साथ और धरती माता के साथ उस सिद्धांत पर करना चहिए जिसके अनुसार दुनिया की हर चीज पवित्र है.
माया का अर्थ भगवान कि ऊर्जा होती है और माया को दो प्रकारसे वर्गीकृत किया गया है: महामाया और योगमाया. यह भी समान ऊर्जा है. संसार का भौतिक रूप भगवान की ऊर्जा है. इस ऊर्जा के भीतर की सारी अभिव्यक्ति समय के प्रभाव में है और इसलिए ये अस्थायी हैं.
ये तीन अवस्था के अंतर्गत आते हैं – अच्छाई, जुनून और अज्ञानता. आध्यात्मिक ऊर्जा तो सद-चित-आनंद है जो आंतरिक है और ज्ञान और आनंद से भरा है. अगर हम इस संसार को भगवान के ऊर्जा के रूप में या कृष्ण के संपदा के रूप में देखते हैं तो हम इसके सच्चे आध्यात्मिक प्रकृति को देख रहे हैं.
यह भगवान की महान रचना का एक हिस्सा है.
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Answer:
इस संसार के वास्तविक स्थिति निम्न प्रकार के होते है जैसे की नदिया, पर्वतो, जंगल,आदि जो भी हम आँखों से देखते है या फिर महसूस किया जाता है इसी को वास्तविक स्थिति कहा जाता हैं?