Hindi, asked by 1000skumaryadav, 6 hours ago

इस संसार से संपर्क भी एक संरचनात्मक कर्म है इस कर्म के बिना मान्यता अधूरी है

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Answered by gajendrakushwah383
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sorry brother

Answered by rahulrock30777
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Answer:

यह पंक्ति मलयज के 10 मई, 1978 की डायरी से उद्धृत है।

मानव संसार से जुड़ा है, तभी तो सृष्टि गतिशील है वह सृष्टि का भोग भी करता है और उसकी रचना भी करता है, यही गतिशीलता है।

यह भी सत्य है कि मानव अपने संसार का निर्माता स्वयं ही है।

उसका चित्त संसार को भोगता भी है और उसमें जीता भी है।

यदि वह संसार से विमुख हो जाय उसकी संपृक्तता तोड़ दे तो फिर संसार उजड़ ही जायेगा।

कर्महीन संसार श्मशान बन जायेगा, मरु प्रदेश बन जायेगा।

अत: संसार में संक्ति प्राणी मात्र का धर्म और विधाता के विधान का पालन है। कर्म का भोग, भोग का कर्म यही जड़ चेतन का आनन्द है।

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