इस समाधि मे छिपी हुई है, एक राख की ढेरी। जलकर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी । यह समाधि यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की। अंतिम लीला स्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की। यहीं कहीं पर विखर गई वह, भग्न विजय माला सी। उसके फूल यहाँ संचित है, यह स्मृति शाला सी।। सहे वार पर वार अंत तक, लड़ी वीर बाला सी। आहुति सी गिर चढ़ी चिता पर, चमक उठी ज्वाला सी। बढ़ जाता है मान वीर का, रण मे बलि होने से। मूल्यवती होती सोने की, भस्म यथा सोने से।
रानी से भी अधिक हमें अब, यह समाधि है प्यारी। यहाँ निहित है स्वतंत्रता की, आशा की चिंगारी।।
1 प्रस्तुत कविता में किसका वर्णन किया गया है तथा क्यों?
2 'रानी से भी अधिक हमें अब यह समाधि है प्यारी', पंक्ति के माध्यम से कवयित्री क्या कहना चाहती है ?
3 'भग्न विजय माला-सी' का क्या तात्पर्य है?
4 शनी लक्ष्मीबाई को 'मरदानी' क्यों कहा गया है?
5 प्रस्तुत काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिरिख
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