Hindi, asked by saurabh6561, 9 months ago

इसका हिंदी में अनुवाद करें

मन पछितैहै अवसर बीते।
दुर्लभ देह पाइ हरिपद भजु, करम, बचन अरु हीते॥१॥
सहसबाहु, दसबदन आदि नप बचे न काल बलीते।
हम हम करि धन-धाम सँवारे, अंत चले उठि रीते॥२॥
सुत-बनितादि जानि स्वारथरत न करु नेह सबहीते।
अंतहु तोहिं तजेंगे पामर! तू न तजै अबहीते॥३॥
अब नाथहिं अनुरागु जागु जड़, त्यागु दुरासा जीते।
बुझै न काम-अगिनि तुलसी कहुँ, बिषयभोग बहु घी ते॥४॥​

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Answered by bhatiamona
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तुलसीदास के विनय पत्रिका के इन दोनों का भावार्थ इस प्रकार है...

मन पछितैहै अवसर बीते।

दुर्लभ देह पाइ हरिपद भजु, करम, बचन अरु हीते॥१॥

भावार्थ : तुलसीदास कहते हैं कि हे मनुष्य अभी समय है, तुम जाग जाओ और समय पर संभल जाओ, नहीं तो यह कीमती समय यूं ही निकल जाएगा और फिर वापस नहीं आने वाला। इस कीमती समय को भगवान की भक्ति और भजन-कीर्तन में लगाकर अपने जीवन का उद्धार करो।

सहसबाहु, दसबदन आदि नप बचे न काल बलीते।

हम हम करि धन-धाम सँवारे, अंत चले उठि रीते॥२॥

भावार्थ : सहस्रबाहु और रावण आदि भी समय के कुचक्र से नहीं बच पाए तो वे अपने पूरे जीवन पर्यंत धन और धाम से जाते रहे, लेकिन अंत में खाली हाथ ही इस दुनिया से चले गए।

सुत-बनितादि जानि स्वारथरत न करु नेह सबहीते।

अंतहु तोहिं तजेंगे पामर! तू न तजै अबहीते॥३॥

भावार्थ : तुम्हारे जो पुत्र पत्नी या परिवार के अन्य सदस्य हैं बेसन से किसी ना किसी स्वार्थ के कारण ही जुड़े हैं इसलिए उनसे ज्यादा प्रेम मत करो क्योंकि अंत में वह सब तुम्हें छोड़कर चले जाएंगे मुसीबत में तुम्हारे काम नहीं आएंगे तो तुम अभी से ही इन्हें त्याग क्यों नहीं देते

अब नाथहिं अनुरागु जागु जड़, त्यागु दुरासा जीते।

बुझै न काम-अगिनि तुलसी कहुँ, बिषयभोग बहु घी ते॥४॥

भावार्थ : तुम अभी नींद से जाग जाओ और ईश्वर के प्रति अपने मन में भक्तिभाव  पैदा करो। तुम्हारे मन में यदि इच्छाएं कामनाएं उत्पन्न होती रहेंगी तो यह कभी भी खत्म नहीं होंगी और हमेशा बढ़ती रहेगी। इन विषय वासनाओं के चक्कर में ना पढ़ो। यह विषय वासना काम रूपी अग्नि के समान है, जिसमें घी डालने से और अधिक बढ़ती है। इससे मुक्ति पाने के लिये तुम्हें प्रभु की भक्ति का ही सहारा लेना पड़ेगा।

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