इसमें दी गई शिक्षा नवयुवकों के लिए प्रेरणादायक है। नए कोच में मायनों का सटीक प्रयोग अन्या दुर्गच है।
सीधी बालों द्वारा लोगों को सही राने पर लाने का प्रयास किया है।
जला सब तेल दिया बुझ गया है अब जलेगा क्या?
बना जब पेड़ उकठा काठ तब फूले फलेगा क्या?
रहा जिसमें न दम, जिसके लहू पर पड़ गया पाला,
उसे पिटना पिछड़ना, ठोकरें खाना खलेगा क्या?
भले ही बेटियाँ बहनें लुटें, बरबाद हों बिगड़ें,
कलेजा जबकि पत्थर बन गया है तब गलेगा क्या?
चलेंगे चाल मनमानी, बनी बातें बिगाड़ेंगे,
जो हैं चिकने घड़े उन पर किसी का बस चलेगा क्या?
जिसे कहते वही अच्छा, उसी पर हैं गिरे पड़ते,
भला कोई कहीं इस भाँति अपने को छलेगा क्या?
न जिसने घर संभाला, देश को वह क्या संभालेगा,
न जो मक्खी उड़ा पाता है, वह पंखा झलेगा क्या?
मरेगा या करेगा काम वह जी में ठना जिसके,
गिरे सिर पर न बिजली क्यों जगह से टलेगा क्या?
नहीं कठिनाइयों में वीर लौं कायर ठहर पाते,
सुहागा आँच खाकर काँच के जैसा ढलेगा क्या?
सगे के जो न आया काम, करेगा जातिहित वह क्या,
न जिससे पल सका कुनबा, नगर उससे पलेगा क्या?
रंगा जो रंग में उसके, बना जो धूल पाँवों की,
रंगेगा वह वसन क्यों राख तन पर वह मलेगा क्या?
न आँखों में बसा जो क्या भला मन में बसेगा वह,
न दरिया में हला जो, वह समुंदर में हलेगा क्या?
-अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध
Plz someone provide the sar of this poem. Line by line pls
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