Hindi, asked by sowmyagontla3174, 11 months ago

Isha Tune Mere Gayi Mere Man Se Class 8 Chapter Charactersketch

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Answered by shishir303
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“ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से” हिंदी के प्रसिद्ध लेखक ‘रामधारी सिंह दिनकर’ द्वारा लिखित एक वैचारिक निबंध है। इस निबंध में  लेखक ने ईर्ष्या और ईर्ष्यालु व्यक्तियों के बारे में विवेचन किया है। लेखक ने ये समझाने का प्रयत्न किया है कि ईर्ष्या जैसी प्रवृति के के कारण क्या हानियाँ होती हैं।

लेखक के घर के पास एक वकील साहब रहते हैं, उनके पास सभी सुख साधन हैं, परंतु वे फिर भी सुखी नही हैं। उनके अंदर ईर्ष्या की अग्नि जल रही है। वो अपने पड़ोसी से ईर्ष्या करते हैं, क्योंकि उनका पड़ोसी जो कि एक बीमा एजेंट है उनसे अधिक संपन्न हैं। वकील साब की मासिक आमदनी अच्छी खासी है, बड़ा घर है, मोटर है। लेकिन वो अपने जीवन में मिली सुख-सुविधायें का आनंद न उठाकर अपने पड़ोसी की तरक्की से जलन का भाव रख अपने सुख-चैन को भी नष्ट कर रहे हैं।

लेखक यह कहना चाहता है कि जिस व्यक्ति के मन में एक बार ईर्ष्या जन्म ले लेती है तो वह ईर्ष्या उस व्यक्ति को अंदर ही अंदर जलाती रहती है। ईर्ष्या उसके सुख को पूरी तरह नष्ट कर देती है। ईर्ष्यालु व्यक्ति किसी का सुख नही देख सकता और ना खुद सुखी रह पाता है।

ईर्ष्यालु व्यक्ति अंसतोषी स्वभाव के होते हैं। भगवान ने उन्हें जो कुछ दिया है वह उसका महत्व नही समझते बल्कि दूसरे को मिली सुख-सुविधाओं पर उनका ध्यान ज्यादा रहता है। इस कारण वह ईर्ष्या में जल-जल कर अपना जीवन यूं ही मिटा देते हैं।

लेखक कहता है कि ईशा की बड़ी बेटी का नाम निंदा है। ईर्ष्या के भाव के कारण ही ईर्ष्यालु व्यक्ति हमेशा उन लोगों की निंदा करने लगता है, जिनके प्रति ईर्ष्या का भाव रखता है।

यहां लेखक ने ये समझाने का प्रयत्न किया है कि हमारे पास जो कुछ भी है उसी में संतोष कर ईश्वर को उसके प्रति शुक्रिया अदा करना चाहिए। दूसरे को क्या मिला क्या नहीं मिला हमें इस से मतलब नहीं होना चाहिए। हम को क्या मिला हमें उसका महत्व समझना चाहिये।

Answered by namansharmahero78
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Answer:

the upper answer is amazing and right

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