इश्वर भक्ती मैं नाम स्मरण का महत्व होता है इस विषय पर 40-50 शब्दों में अपने विचार लिखिए
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kadambinimishra19774
kadambinimishra19774
16.05.2020
Hindi
Secondary School
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ईश्वर भक्ति में नामस्मरण का महत्व होता है इस विषय पर अपना
मंतव्य लिखिए
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ayanakhan074
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भक्ति ईश्वर के प्रति तीव्र प्रेम है | ईश्वर प्रेम है और ईश्वर से प्रेम करना उसके लिए जो वह है - भक्ति होती है | भक्ति की कोई दशा नहीं होती है | हमें ईश्वर से कोई शर्त या मांग नहीं करनी चाहिए कि वह हमारी इच्छाओं की पूर्ती उसी तरह करे जिस तरह हम उन्हें पाना चाहते है, अन्यथा हम उसके प्रति सम्मान या प्रेम नहीं रखेंगे |
एक भक्त (भगवान् का प्रिय ) ईश्वर से प्रेम रखता है | उस प्रेम से सम्बन्धित कोई शर्त नहीं होती है | उसके प्रेम में उत्कंठा होती है | पागल प्रेमी की भांति अपने प्रिय के प्रति लालसा रखने की तरह भक्त ईश्वर के प्रति लालसा रखता है | वह हर समय ईश्वर के प्रति सोंचता है और यह स्मरण जारी रहता है | ईश्वर के प्रति लालसा में कोई अंतराल नहीं होता है | सोने में जाग्रत अवस्था में, कार्य में, घर में, भोजन के दौरान, टहलने के दौरान, भक्त ईश्वर के प्रति सोंचता है | यह एक जूनून होता है और यह जूनून ईश्वर को भक्त से बांधे रखता है |
जब भक्त को अपने प्रिय ईश्वर से सहायता की आवश्यकता होती है, सर्वोच्च शक्ति भक्त की तत्काल सहायता के लिए दौड़ पड़ती है |
भक्ति एक पवित्र भावना होती है | यह विशिष्ट होती है | यह उच्च स्तर की चेतना की ओर भक्त को उन्नत करती है | प्रबल भक्ति सर्वोच्च से स्वयं को समाहित करने की दशा होती है | भक्त उन सब से जुड़ जाता है | जो उसके पास होता है और अपनी आराधना की वस्तु जैसे ईश्वर के लिए कार्य करता है | जीवन में प्रत्येक कार्य उसके प्रिय ईश्वर से जुड़ा होता है | उसके जीवन का सबकुछ एक आराधना और पूजा ईश्वर के प्रति होती है | जब मस्तिष्क स्थिरता पूर्वक एवं लगातार ईश्वर पर केन्द्रित होता है - वह ईश्वर से एकाकार हो जाता है |
भक्ति विश्वास से आरम्भ होती है | हमें प्रक्रति एवं संसार के आश्चर्य के बारे में सिखाया जाता है और इसलिए हम यह विश्वास रखते हैं कि ईश्वर अच्छा होता है | जैसे ही हम प्रक्रति एवं जीवन के चमत्कारों एवं आश्चर्यों से और अधिक ज्ञान अर्जित करते हैं हमारा विश्वास ईश्वर के प्रति आकर्षित करता है | हम उसकी क्ष्रमताओं के बारे में मंथन करते हैं और उपहार जो वह हम पर बरसाता है और हम उसके प्रति आकर्षित होते हैं | ईश्वर के प्रति निरंतर आकर्षण ईश्वर की ओर ईश्वर की भूमिका की अधिकाधिक समझ एवं उसके मार्गों के प्रति अग्रसर करता है और हम उसकी आराधना आरम्भ कर देते हैं | जैसे ही हमारी आराधना और अधिक प्रबल हो जाती है, हम अपनी सभी मूर्खतापूर्ण इच्छाओं से छुटकारा पा जाते हैं और केवल उससे प्रेम करने की उसके लिए जो वह होता है की आकांक्षा रखते हैं | हम स्वयं को ईश्वर से जुड़ा पाते हैं और हम उससे सर्वोच्च प्रेम से प्यार करते हैं | हम प्यार के लिए ईश्वर से प्रेम करते हैं | इस कहानी को समझें :-
एक चोर अपने समय के सबसे महान चोर के रूप में नाम कमाना चाहता था | वह लोगों के पास रखे हुए खजाने को पाने के लिए चारों तरफ घूमता था | एक शाम जैसे ही वह एक मंदिर की ओर से गुजरा उसने श्री कृष्ण के बारे में एक उपदेशक को बोलते हुए सुना | वे भगवान् के सुन्दर स्वरुप और भव्य गहने की सरणी जो वे पहना करते थे का वर्णन कर रहे थे | चोर उस वृतांत से प्रभावित हुआ और मन्दिर में प्रवेश किया और भाषण को सुनने के लिए भीड़ के बीच में बैठ गया | उपदेशक के पास वाक्पटुता थी और वृन्दावन में छोटे कृष्ण की खेलती हुई तस्वीर का सजीव चित्रण कर सकता था | वह अत्यधिक विश्वास से बोलता था कि प्रतिदिन श्री कृष्ण वृन्दावन की धूल भरी गलियों में खेलते थे | चोर जिसने उन शब्दों को सुना, भगवान् कृष्ण के स्वरुप एवं कीमती आभूषणों के प्रत्येक हिस्से की "जो वे पहनते थे " कल्पना एवं चित्रण कर सकता था | वह आभूषणों को चुराना चाहता था ( वह अपने समय का प्रसिद्द चोर था) भाषण के बाद चोर बच्चे के स्वरुप और कीमती आभूषणों के स्वरूप की कल्पना करते हुए वृंदावन की ओर चला | उसका मस्तिष्क स्वरुप एवं आभूषणो के वृतांत से दिग्भ्रमित था | उसने महसूस किया कि वह ठीक अपने सामने बच्चे को देख सकता था | उसने यमुना नदी पार की एवं वृंदावन पहुंचा | जैसे ही वह गाँव से गुजरा उसने एक छोटे बच्चे को ठीक उसी वृतांत के अनुसार तथा आभूषण धारण किये हुए अपने सामने देखा | वह उसे पकड़ने के लिए उसके पास दौड़ा | उस छोटे बच्चे ने उसे पकड़ लिया एवं उसे गले लगाया | भगवान् के स्पर्श से चोर परिवर्तित हो गया | वह यह भूल गया कि वह यहाँ क्यों आया है और वह क्या करना चाहता है | वह कीमती आभूषणो एवं अपनी प्रसिद्धि तथा एक चोर रूप में यश को भूल गया | श्री कृष्ण के प्रति असीम प्रेम उसमे समाहित हो गया और वह एक मित्र तथा एक महान ईश्वर का भक्त हो गया | बाद में वह श्याम चोर - तात्पर्य कृष्ण का लुटेरा के नाम से हुआ | भगवान् का स्पर्श पारसमणि का स्पर्श था जिसने चोर को एक मामूली खजाने के लुटेरे से भगवान् के सबसे महान भक्तों में एक के रूप में परिवर्तित कर दिया
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answer chahiya Hindi ka please