iska hindi mein explanation.
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3. हे अविगत निरंजन परमात्मा! मैं तुम्हारी सेवा क्या समझूँ? मैं भले ही तुम्हें बंधन में न बाँधू किंतु मैं आपकी छाया को नहीं छोड़ सकता। मैं तुम्हारी ही सेवा करता रहूँगा। जिसके चरण पाताल और शीश आसमान में है, भला वह परमात्मा एक अंजुलि में कैसे समा सकता है? शिव, सनकादिक ने जिसका अंत नहीं पाया और ब्रह्मा ने जिन्हें खोजते हुए कई जन्म गँवाए, मैं उस प्रभु की सगुण मानकर फूल−पत्रादि से पूजा नहीं करूँगा बल्कि सहज समाधि के द्वारा ही वह सेव्य है। जिसके पैर के नाख़ून के पसीने मात्र से गंगा प्रवाहित हो गई थी, जिसकी रोमावली में अठारह भार की सिद्धियाँ मौजूद हैं और जिसके श्वास में चारों वेदों और स्मृतियों का ज्ञान समाहित है, रैदास कहते हैं कि मैं उसी प्रभु की भक्ति के लिए उसका स्मरण करता हूँ।
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