iss dohe ka aarth likhe
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चित्र में दिये गये दोहे ‘रहीम’ द्वारा रचित किये गये हैं। ‘रहीम’ का पूरा नाम ‘अब्दुल रहीम (अब्दुर्रहीम) ख़ानख़ाना’ था।
चित्र में दिये गये दोहों के अर्थ इस प्रकार हैं...
‘रहिमन’ वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं ।
उनते पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं ।
रहीमदास जी कहते हैं कि वो लोग लगभग मृतक के समान हैं जो किसी के आगे हाथ फैलाते हैं। अर्थात उनकी अंतरात्मा मर चुकी है क्योंकि सच्चा पुरुषार्थ किसी से मांगने में नही परिश्रम से अर्जित करने में है। इसके साथ ही वो लोग नैतिक रूप से बहुत पहले ही मर चुके हैं जो किसी के मांगने पर भी कुछ नही देते हैं। अर्थात ऐसे लोगों की अंतरात्मा तो बहुत पहले ही मर चुकी होती है जो किसी याचक के मांगने पर भी उसकी मदद नही करते।
दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं.
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं.
रहीमदास जी कहते हैं कि कौआ और कोयल दोनों दिखने में एक से लगते हैं और दोनों का रंग काला होता है। दोनों को देखकर आसानी से पहचान करना मुश्किल है। पर जब बसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज सुनकर पता चल जाता है कि वो कोयल है। उसी प्रकार इंसानों के स्वभाव पहचान केवल देखकर करना मुश्किल है जब सुख या दुख का समय आता है तो उनका मूल स्वभाव प्रकट हो जाता है।
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
रहीमदास जी कहते हैं कि वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर अर्थात तालाब भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह जो और महान और सज्जन व्यक्ति होते हैं वो केवल अपने भले के लिये ही कार्य नही करते हैं बल्कि वो ऐसे कार्य करते हैं जिससे दूसरों का भला हो, समाज का भला है। अर्थात वृक्ष और सरोवर की तरह सज्जन लोग भी दूसरों के लिये जीते हैं।
कहि ‘रहीम’ संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
बिपति-कसौटी जे कसे, सोई सांचे मीत॥
रहीमदास जी कहते हैं कि यदि आपके पास धन-सम्पत्ति है तो बहुत सारे लोग आपके सगे-संबंधी, मित्र आदि बन जाते हैं। पर सच्चे मित्र तो वे होते हैं जो विपत्ति में भी आपका साथ देते हैं। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह सोना खरा है या खोटा, इसकी परख कसौटी पर घिसने से ही होती है। इसी प्रकार विपत्ति की कसौटी पर ही सच्चे मित्र-संबंधी की पहचान होती है।
‘रहिमन’ निज मन की बिथा, मनही राखो गोय ।
सुनि अठिलैहैं लोग सब , बाँटि न लैहैं कोय ॥
रहीमदास जी कहते हैं आपको अपने दुख को अपने अंदर ही छिपाकर रखना चाहिये। यूंही हर किसी को अपना दुखड़ा रोने से कोई आपको नही समझेगा। क्योंकि इस दुनिया में सबको अपनी ही पड़ी हुई है और किसी दूसरे के दुख से कोई किसी कोई सरोकार नही है। आप अपना दुख व्यक्त करेंगे तो लोग केवल झूठी सहानुभूति ही दर्शायेंगे और वास्तव में आपके दुख को बांटने वाला कोई नही मिलेगा
‘रहिमन’ देखि बड़ेन को , लघु न दीजिए डारि ।
जहाँ काम आवै सुई , कहा करै तरवारि ॥
रहीमदास जी कहते हैं कि हर व्यक्ति का और हर वस्तु का अपना महत्व होता है। जहां सुई का अपना महत्व है और तलवार का अपना महत्व है। तलवार भले ही बड़ी हो पर जहां सुई का काम है वहां तलवार काम नही आ सकती है। अर्थात तलवार से हम कपड़े नही की सकते हैं। उसी प्रकार व्यक्ति बड़ा हो या छोटा सबका अपना महत्व है। छोटे से छोटा व्यक्ति भी जरूरत पड़ने पर हमारे काम आ सकता है।
Sanskriti O Mai sabse Shanti Chali Hai Vasant Lok Sabha Adhi Ratiya Kahan gaya hai ki Hamare Madhur Ghan Aise hai jo ukhad vicharo ke baare mein Bataye the galat da Asar Hamare Madhur geet with Madhuri Charo ke baare mein.
2) Vasant Ke Baad grishma Ritu Aati Hai.
3) Kavita Mein Kavi Manish Sukh ka Anth na Hona ki baat ka hai.
4) mere ko Varsha super scene hai Kyunki Uske Bina Sare log Khush Rehte Hain.
Hope it helps uu buddy!!❤️