इतिहास में आजाद की के लिए लड़ने वाली वीर महिलाओं पर अनुच्छेद लिखें हिंदी में हिंदी में
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इतिहास गवाह है कि महिलाओं ने समय-समय पर अपनी बहादुरी और साहस का प्रयोग कर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चली हैं। आज हम अपनी खबर में ऐसी ही महिलाओं के शौर्य और वीरता की बात करेंगे जिन्होंने क्रांतिकारी गातिविधियों में अपना योगदान निडर होके दिया और कुछ ऐसी भी वीरांगनाएँ जिन्होंने असंभव प्रयास करते हुए किसी भी युग में न भूलने वाला काम किया और अमर हो गयी।
रानी लक्ष्मीबाई (19 नवंबर - 17 जून 1858)
भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा ज़रूर होती है। रानी लक्ष्मीबाई न सिर्फ़ एक महान नाम है बल्कि वह एक आदर्श हैं उन सभी महिलाओं के लिए जो खुद को बहादुर मानती हैं और उनके लिए भी एक आदर्श हैं जो महिलाएं ये सोचती है कि ‘वह महिलाएं हैं तो कुछ नहीं कर सकती.’ देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम (1857) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी और वह अपनी वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं।
ऊषा मेहता सावित्रीबाई फूले (25 मार्च 1920 - 11 अगस्त 2000)
कांग्रेस रेडियो जिसे ‘सीक्रेट कांग्रेस रेडियो’ के नाम से भी जाना जाता है, इसे शुरू करने वाली ऊषा मेहता ही थीं. भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान कुछ महीनों तक कांग्रेस रेडियो काफ़ी सक्रिय रहा था। इस रडियो के कारण ही उन्हें पुणे की येरवाड़ा जेल में रहना पड़ा। वे महात्मा गांधी की अनुयायी थीं।
सरोजिनी नायडू (13 फरवरी 1879 - 2 मार्च 1949)
भारत कोकिला सरोजिनी नायडू सिर्फ़ स्वएतंत्रता संग्राम सेनानी ही नहीं, बल्कि बहुत अच्छी कवियत्री भी थीं। गोपाल कृष्ण गोखले से एक ऐतिहासिक मुलाक़ात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। सरोजिनी नायडू ने खिलाफ़त आंदोलन की बागडोर संभाली और अग्रेजों को भारत से निकालने में अहम योगदान दिया।
विजयलक्ष्मी पंडित (18 अगस्त 1900 - 1 दिसम्बर 1990)
एक संपन्नय, कुलीन घराने से ताल्लुहक रखने वाली और जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मीं पंडित भी आज़ादी की लड़ाई में शामिल थीं. सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में बंद किया गया था। वे संयुक्तम राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष थीं और स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत थीं जिन्होंने मास्को, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
बेगम हजरत महल (1820 - 7 अप्रैल 1879)
बेगम हजरत महल 1857 के विद्रोह के सबसे प्रतिष्ठित चेहरों में से एक हैं। बेगम हजरत महल की हिम्मत का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने मटियाबुर्ज में जंगे-आज़ादी के दौरान नजरबंद किए गए वाजिद अली शाह को छुड़ाने के लिए लार्ड कैनिंग के सुरक्षा दस्ते में भी सेंध लगा दी थी। उन्होंने लखनऊ पर कब्ज़ा किया और अपने बेटे को अवध का राजा घोषित किया। इतिहासकार ताराचंद लिखते हैं कि बेगम खुद हाथी पर चढ़ कर लड़ाई के मैदान में फ़ौज का हौसला बढ़ाती थीं।