इतिहास साक्षी है बहुत बार अकेले चने ने ही भड़ फ़। है
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सदियों पुराने रिवाजों के बारे में कहा जाता है कि "इन्हें तो निभाना ही पड़ता है", फिर चाहे वह कितना ही दकियानूसी क्यों न हो। इन्हीं पुराने रिवाजों में से एक है दहेज़ प्रथा। भारत में इस प्रथा को रोकने के लिए करीब ४५ साल पहले दहेज़ लेने और देने को कानूनन अपराध घोषित किया गया था। एक कश्मीर को छोड़कर यह कानून पूरे भारत में लागू है। लेकिन आज भी हिंदू समाज पुराने रीति-रिवाजों के चलते कानून की अवहेलना करते हुए दहेज़ लेता और देता है। दुखद बात यह है कि मैंने ऐसी बहुत सी शादियाँ देखी हैं जो दहेज़ के आधार पर ही तय हुयी थीं, न कि लड़का-लड़की के मेल के मुताबिक।
एक लड़की थी निशा। उसका विवाह एक मुनीष के साथ तय हुआ। लेकिन विवाह के मंडप में मुनीष के परिवार ने १० लाख रुपयों की मांग की, और माँग पूरी न होने पर बारात वापस ले जाने की बात कही।
ऐसा बहुत सी शादियों में होता है। आज भी। और आमतौर पर रीति-रिवाजों के चलते, और लड़की की शर्मिंदगी से बचने के लिए लड़की वाले ऐसी किसी भी नाजायज़ मांग को पूरा भी करते रहे हैं।
लेकिन निशा ने ऐसा नहीं किया। अपनी बेईज्ज़ती की परवाह न करते हुए निशा ने वह फैसला लिया, जो उसे सत्य लगा। उसने न सिर्फ़ ऐसी किसी भी मांग को पूरा करने से मना कर दिया, बल्कि इसे कानून की अवहेलना देखते हुए पुलिस बुलाकर मुनीष और उसके परिवार को गिरफ्तार भी करवाया। जिस देश में करोड़ों लड़कीवाले परिवार रोजाना ऐसी मांगों को पूरा करते आए हैं, यदि कोई एक लड़की खुलकर इस सामाजिक अपराध का विरोध करे, तो यह बड़े अचरज की बात थी।
यह ख़बर आग की तरह पूरे भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में फैल गई। न सिर्फ़ भारत, बल्कि दुनिया भर के अख़बारों में निशा की फोटो छपने लगी। निशा की हिम्मत और उसके सही फैसले की दाद देते हुए उसके घर के बाहर नौजवान युवकों का ताँता लग गया, जिनमें डॉक्टर, इंजिनियर, वकील, और IAS ऑफिसर तक शामिल थे। निशा ने आखिरकार आश्विन शर्मा से शादी की। आश्विन नॉएडा में सॉफ्टवेर इंजिनियर हैं। निशा की शादी में उनको अपने पिता से उपहार-स्वरुप एक सोने की माला मिली।
चित्र में देखिये निशा की शादी का कार्ड और उसकी लाल साड़ी
इस तरह इस सारे प्रकरण का अंत हुआ। लेकिन अंत होते-होते इसने कई और प्रकरणों को जन्म दिया। निशा के बाद और कई लड़कियों ने दहेज़ के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई (यह अलग बात है कि आजकल दहेज कानून का दुरूपयोग ज़्यादा हो रहा है)।
हजारों सालों से चले आ रहे करोड़ों लोगों द्वारा अपनाए हुए दकियानूसी रीति-रिवाजों को तोड़कर निशा ने एक समाज-सुधर का एक ज्वलंत उदहारण खड़ा किया है।
यदि आप एक नारी हैं, तो आपसे अनुरोध है की निशा की कहानी घर-घर में सुनाएं।
यदि आप एक पुरूष हैं, तो प्रतिज्ञा करें कि दहेज नहीं लेंगे, और देंगे भी नहीं।
यदि आप एक वकील चिट्ठाकार हैं, तो आपसे अनुरोध है कि दहेज कानून कि सरल शब्दों में अपने चिट्ठे पर व्याख्या करें।
यदि आप सिर्फ़ एक पाठक हैं, तो याद रखें कि अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है।