इतने प्राण, इतने हाथ; इतनी बुद्धि इतना ज्ञान, संस्कृति और अंतःशद्धि इतना दिव्य, इतना भव्य, इतनी शक्ति यह सौंदर्य, वह वैचित्र्य, ईश्वर-भक्ति, iski bhavarath btaye
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g kumar thapad wala lol hahaha
Explanation:
इतने प्राण, इतने हाथ; इतनी बुद्धि
इतना ज्ञान, संस्कृति और अंतःशद्धि
इतना दिव्य, इतना भव्य, इतनी शक्ति
यह सौंदर्य, वह वैचित्र्य, ईश्वर-भक्ति,
इतना काव्य, इतने शब्द, इतने छंद—
जितना ढोंग, जितना भोग है निर्बंध
इतना गूढ़, इतना गाढ़, सुंदर जाल—
केवल एक जलता सत्य देने टाल।
छोड़ो हाय, केवल घृणा औ' दुर्गंध
तेरी रेशमी वह शब्द-संस्कृति अंध
देती क्रोध मुझको, ख़ूब जलता क्रोध
तेरे रक्त में भी सत्य का अवरोध
तेरे रक्त से भी घृणा आती तीव्र
तुझको देख मिलती उमड़ आती शीघ्र
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