इतने ऊाँ चे उठो कक क्जतना उठा गगन है।
िेखो इस सारी िनुनया को एक दृक्ष्ट से
लसंधचत करों धरा, समता की भाि-िक्ृष्ट से
जात़ी-भेि की, धमव-िेश की
कािे-गोरे रंग-द्िेर् की
ज्िािाओं से जिते जग में
इतने श़ीति िहो कक क्जतना मिय पिन है॥
नए हार् से ितवमान का रुप साँिारों
नई तूलिका से धचत्रों के रंग उभारों
नए राग को नूतन स्िर िो
युग की नई मूनत-वरचना में
इतने मौलिक िनो कक क्जतना स्िंय सूजन है॥
चाह रहे हम इस धरत़ी को स्िरग् िनाना
अगर कहीं हो स्िगव, उसे धरत़ी पर िाना
सूरज, चााँि, चााँिऩी तारे
सि हैंप्रनतपि सार् हमारे
िो कुरुप को रुप सिोना
इतने सुिंर िनो कक क्जतना आकर्वण है॥
१) कवि ककसके समान िहना चाहते हैंऔर क्यों?
२) कवि सजृ न के समान मौलिक िनने की प्रेरणा क्यों िेना चाहते हैं?
३) काव्यांश के लिए उपयुक्तव श़ीर्वक लिखखए और श़ीर्वक के चनु ाि का कारण भ़ी िताइए?
Answers
Answered by
0
Answer:
Do not know
Explanation:
Do not know
Similar questions