iv) रहते हुए तुमसा सहायक प्रण हुआ पूरा नहीं,
इससे मुझे है जान पड़ता भाग्य बल ही सब कहीं।
जलकर अनल में दूसरा प्रण पालता हूँ मैं अभी,
अच्युत युधिष्ठिर आदि का अब भार है तुम पर सभी।।
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