(IV) सकल्प-शाक्त
अथवा गद्यांश-11
शिशु को यदि हम राष्ट्र की अमूल्य निधि के रूप में देखना चाहते हैं तो उसे एक ऐसा आर्दश
वातावरण प्रदान करना होगा, जिसमें निर्बध गति से उसका चहमुखी विकास हो सके।
स्वच्छ.शांत, भयमुक्त और स्वास्थ्यप्रद वातावरण में ही शिशु की कोमल भावनाएँ सुरक्षित रह
सकती हैं। शिशु की कोमल भावनाओं को आघात पहुँचाना सामाजिक अपराध है । राष्ट्र का यह
पुनित कर्तव्य है कि वह प्रत्येक बालक को ऐसा वातावरण उपलब्ध कराए कि उसमें हीन भावना
न पनपने पाए। हीन भावना से ग्रासित शिशु बड़ा होने पर समाज के प्रति अपने कर्तव्य का सही
रूप से निर्वाह नहीं कर सकता।
(क) शिशु को राष्ट्र की अमूल्य निधि किस प्रकार बनाया जा सकता है।
(i) आर्दश वातावरण प्रदान कर
(i) शिक्षित करके
(ii) खेल सामग्री उपलब्ध कराके
(iv) अनुशासन में रहकर
(ख) शिशु की कोमल भावनाएँ कैसे वातावरण में सुरक्षित रह सकती हैं।
(i) अनुशासित वातावरण में
(ii) स्वच्छ एवं शांत वातावरण में
(iii) शांत,भयमुक्त और स्वास्थ्यप्रद वातावरण में
(iv) प्रदूषण रहित वातावरण
(ग) चहुंमुखी विकास का तात्पर्य है।
() चार मुख वाला विकास
(ii)चार दिशाओं का विकास
(iii) सर्वगीण विकास
(iv) आर्थिक विकास
(घ) राष्ट्र का पुनित कर्तव्य क्या है।
(i) बच्चे के भविष्य को सुरक्षित न रखना
(ii) बच्चों में हीन भावना न पनपने देना
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क. आदर्श वातावरण प्रदान कर शिशु की राष्ट्र की अमूल्य निधि बनाया जा सकता है।
ख. शिशु को कोमल भावनाये शांत, भयमुक्त और स्वास्थप्रद वातावरण में सुरक्षित रह सकती है।
ग. चहमुखी विकास का तात्पर्य है सर्वांगीण विकास।
घ. बच्चो में हिन भावना न पनपने देना ये राष्ट्र का पुनित कर्तव्य है।
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