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सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार पर निबन्ध | Essay on Corruption in Public Life in Hindi!
किसी देश में भ्रष्टाचार किस सीमा तक पहुँच पाता है, यह बहुत हद तक वहाँ के लोगों की मनोवृति पर निर्भर करता है । भारत के लोग इस संबंध में बिल्कुल उदासीन है ।
वास्तव में लोगों की यही उदासीनता सरकारी भ्रष्टाचार को मौन स्वीकृति प्रदान करती है । इसका कुछ कारण तो अज्ञानता है परन्तु मुख्य भूमिका ऐतिहासिक है । प्राचीन काल से ही भारत के लोग आक्रमणकारियों द्वारा पददलित होते रहे है और इन आक्रमणों के बीच की अवधि में भी स्थानीय राजाओं ने इनसे कोई अच्छा व्यवहार नहीं किया था ।
विदेशी और देशी शासक, कुछ अपवादों को छोड़कर, सामान्य जनता के प्रति अपने अधिकारियों के व्यवहार के संबंध में तब तक कभी चिन्तित नही होते थे जब तक उनके राज्य के खजाने की आवश्यकताएं पूरी होती रहती थी । सार्वजनिक प्रशासन में भ्रष्टाचार का होना भारत में ही कोई विशेष बात नहीं है ।
दूसरी ओर सरकार के कार्यो में वृद्धि हो जाने से भ्रष्टाचार के अवसर बढ़ गए हैं । जिलों में प्रशासन का बुनियादी ढांचा अर्थात राजस्व प्रशासन लगभग सभी राज्यों में वैसा ही बना रहा है । पटवारी जिसे अपने क्षेत्र के भूमि अभिलेखों के रखरखाव का काम सौंपा गया है, कृषकों की भूमि के स्वामित्व और कब्जे के संबंध में कुछ भी अन्धेर मचा सकता है ।
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