जो अगणित लघु-दीप हमारे,
तूफ़ानों में एक किनारे,
जल-जलकर बुझ गए, किसी दिन
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल,
कलम, आज उनकी जय बोल।
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hehehehehehheheejhehehe
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ydhklgyiauwjkehftshve bwkalaookw
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