जैब विविधता का सामाजिक मूल्य क्या है.समझाऐ
Answers
Answer:
here is your answer,..
Explanation:
जैव विविधता जीवन और विविधता के संयोग से निर्मित शब्द है जो आम तौर पर पृथ्वी पर मौजूद जीवन की विविधता और परिवर्तनशीलता को संदर्भित करता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (युएनईपी), के अनुसार जैवविविधता biodiversity विशिष्टतया अनुवांशिक, प्रजाति, तथा पारिस्थितिकि तंत्र के विविधता का स्तर मापता है। जैव विविधता किसी जैविक तंत्र के स्वास्थ्य का द्योतक है। पृथ्वी पर जीवन आज लाखों विशिष्ट जैविक प्रजातियों के रूप में उपस्थित हैं। सन् 2010 को जैव विविधता का अंतरराष्ट्रीय वर्ष, घोषित किया गया है।"जैव विविधता एक प्राकृतिक संसाधन है जिससे हमारी जीवन की सम्पूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।"
जैव-विविधता का महत्त्व- जैव-विविधता का मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैव-विविधता के बिना पृथ्वी पर मानव जीवन असंभव है। जैव-विविधता के विभिन्न लाभ निम्नलिखित हैं-
1. जैव-विविधता भोजन, कपड़ा, लकड़ी, ईंधन तथा चारा की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। विभिन्न प्रकार की फसलें जैसे गेहूँ (ट्रिटिकम एस्टिवम), धान (ओराइजा सेटाइवा), जौ (हारडियम वलगेयर), मक्का (जिया मेज), ज्वार (सोरघम वलगेयर), बाजरा (पेनिसिटम टाईफाइडिस), रागी (इल्यूसिन कोरकेना), अरहर (कैजनस कैजान), चना (साइसर एरियन्टिनम), मसूर (लेन्स कुलिनेरिस) आदि से हमारी भोजन की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है जबकि कपास (गासिपियम हरसुटम) जैसी फसल हमारे कपड़े की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। सागवान (टेक्टोना ग्रान्डिस), साल (शोरिया रोबस्टा), शीशम (डेलवर्जिया सिसू) आदि जैसे वृक्षों की प्रजातियाँ निर्माण कार्यों हेतु लकड़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। बबूल (अकेसिया नाइलोटिका), शिरीष (एल्बिजिया लिबेक), सफेद शिरीष (एल्बिजिया प्रोसेरा), जामुन (साइजिजियम क्यूमिनाई), खेजरी (प्रोसोपिस सिनेरेरिया), हल्दू (हेल्डिना कार्डिफोलिया), करंज (पानगैमिया पिन्नेटा) आदि वृक्षों की प्रजातियों से हमारी ईंधन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है जबकि शिरीष (एल्बिजिया लिबेक),घमार (मेलाइना आरबोरिया), सहजन (मोरिंगा आलिफेरा), शहतूत (मोरस अल्बा), बेर (जिजिफस जुजुबा), बबूल (अकेसिया नाइलोटिका), करंज (पानगैमिया पिन्नेटा), नीम (एजाडिराक्टा इण्डिका) आदि वृक्षों की प्रजातियों से पशुओं के लिये चारा संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
2. जैव-विविधता कृषि पैदावार बढ़ाने के साथ-साथ रोगरोधी तथा कीटरोधी फसलों की किस्मों के विकास में सहायक होती हैं। हरित क्रांति के लिये उत्तरदायी गेहूँ की बौनी किस्मों का विकास जापान में पाये जाने वाली नारीन-10 नामक गेहूँ की प्रजाति की मदद से किया गया था। इसी प्रकार धान की बौनी किस्मों का विकास ताइवान में पाये जाने वाली डी-जिओ-ऊ-जेन नामक धान की प्रजाति से किया गया था। सन 1970 के प्रारम्भिक वर्षों में विषाणु के संक्रमण से होने वाली धान की ग्रासी स्टन्ट नामक बीमारी के कारण एशिया महाद्वीप में 1,60,000 हेक्टेयर से भी ज्यादा फसल को नुकसान पहुँचाया था। धान की जातियों में इस बीमारी के प्रति प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने हेतु मध्य भारत में पायी जाने वाली जंगली धान की प्रजाति ओराइजा निभरा का उपयोग किया गया था। आई आर 36 नामक विश्व प्रसिद्ध धान की जाति के भी विकास में ओराइजा निभरा का उपयोग किया गया है।
3. वानस्पतिक जैव-विविधता औषधीय आवश्यकताओं की पूर्ति भी करती है। एक अनुमान के अनुसार आज लगभग 30 प्रतिशत उपलब्ध औषधियों को उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों से प्राप्त किया जाता है। उष्णकटिबंधीय शाकीय वनस्पति सदाबहार (कैथरेन्थस रोसियस) विनक्रिस्टीन तथा विनव्लास्टीन नामक क्षारों का स्रोत होता है जिनका उपयोग रक्त कैंसर के उपचार में होता है। सर्पगंधा (राओल्फिया सरपेन्टीना) पादप रेसर्पीन नामक महत्त्वपूर्ण क्षार का स्रोत होता है जिसका उपयोग उच्च-रक्तचाप के उपचार में किया जाता है। गुग्ल (कामीफेरा बिटाई) नामक पौधे से प्राप्त गोंद का उपयोग गठिया के इलाज में किया जाता है। सिनकोना (सिनकोना कैलिसिया) वृक्ष की छाल से प्राप्त कुनैन नामक क्षार का उपयोग मलेरिया ज्वर के उपचार में किया जाता है। इसी प्रकार आर्टिमिसिया एनुआ नामक पौधे से प्राप्त आर्टिमिसिनीन नामक रसायन का उपयोग मस्तिष्क मलेरिया के उपचार में होता है। जंगली रतालू (डायसकोरिया डेल्टाइडिस) से प्राप्त डायसजेनीन नामक रसायन का उपयोग स्त्री गर्भनिरोधक के रूप में होता है।
4. जैव-विविधता पर्यावरण प्रदूषण के निस्तारण में सहायक होती है। प्रदूषकों का विघटन तथा उनका अवशोषण कुछ पौधों की विशेषता होती है। सदाबहार (कैथरेन्थस रोसियस) नामक पौधे में ट्राइनाइट्रोटालुइन जैसे घातक विस्फोटक को विघटित करने की क्षमता होती है। सूक्ष्म-जीवों की विभिन्न प्रजातियाँ जहरीले बेकार पदार्थों के साफ-सफाई में सहायक होती हैं। सूक्ष्म-जीवों की स्यूडोमोनास प्यूटिडा तथा आर्थोबैक्टर विस्कोसा में औद्योगिक अपशिष्ट से विभिन्न प्रकार के भारी धातुओं को हटाने की क्षमता होती है। पौधों की कुछ प्रजातियों में मृदा से भरी धातुओं जैसे कॉपर, कैडमियम, मरकरी, क्रोमियम के अवशोषण तथा संचयन की क्षमता पायी जाती है। इन पौधों का उपयोग भारी धातुओं के निस्तारण में किया जा सकता है। भारतीय सरसों (ब्रैसिका जूनसिया) में मृदा से क्रोमियम तथा कैडमियम के अवशोषण की क्षमता पायी जाती है। जलीय पौधे जैसे जलकुम्भी (आइकार्निया कैसपीज), लैम्ना, साल्विनिया तथा एजोला का उपयोग जल में मौजूद भारी धातुओं (कॉपर, कैडमियम, आयरन एवं मरकरी) के निस्तारण में होता है।
5. जैव-विविधता में संपन्न वन पारितंत्र कार्बन डाइऑक्साइड के प्रमुख अवशोषक होते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड हरित गृह गैस है जो वैश्विक तपन के लिये उत्तरदायी है। उष्णकटिबंधीय वनविनाश के कारण आज वैश्विक तापमान में निरंतर वृद्धि हो रही है जिसके कारण भविष्य में वैश्विक जलवायु के अव्यवस्थित होने का खतरा दिनोंदिन बढ़ रहा है।
mark it as brainliest answer