Hindi, asked by asmitaroy1438, 6 months ago

'जेंडर एवं विकास के मुद्दे मतदान व्यवहार के महत्वपूर्ण निर्धारक तत्व के रूप में उभर
रहे हैं परंतु जाति एवं धर्म अभी भी निर्णायक राजनीतिक दांव हैं। इस कथन का
विश्लेषण कीजिये।​

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राज्य के नागरिकों को देश के संविधान द्वारा प्रदत्त सरकार चलाने के हेतु, अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने के अधिकार को मताधिकार (फ्रैंचाइज) कहते हैं। जनतांत्रिक प्रणाली में इसका बहुत महत्व होता है। जनतंत्र की नीवं मताधिकार पर ही रखी जाती है। इस प्रणाली पर आधारित समाज व शासन की स्थापना के लिये आवश्यक है कि प्रत्येक व्ययस्क नागरिक को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार प्रदान किया जाय।

जिस देश में जितने ही अधिक नागरिकों को मताधिकार प्राप्त रहता है उस देश को उतना ही अधिक जनतांत्रिक समझा जाता है। इस प्रकार हमारा देश संसार के जनतांत्रिक देशों में सबसे बड़ा है क्योंकि हमारे यहाँ मताधिकारप्राप्त नागरिकों की संख्या विश्व में सबसे बड़ी है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद (आर्टिकल) 325 व 326 के अनुसार प्रत्येक वयस्क् नागरिक को, जो पागल या अपराधी न हो, मताधिकार प्राप्त है। किसी नागरिक को धर्म, जाति, वर्ण, संप्रदाय अथवा लिंग भेद के कारण मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

नवीन संविधान लागू होने के पूर्व भारत में 1935 के "गवर्नमेंट ऑव इंडिया ऐक्ट" के अनुसार केवल 13 प्रति शत जनता को मताधिकार प्राप्त था। मतदाता की अर्हता प्राप्त करने की बड़ी बड़ी शर्तें थीं। केवल अच्छी सामाजिक और आर्थिक स्थितिवाले नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया जाता था1 इसमें विशेषतया वे ही लोग थे जिनके कंधों पर विदेशी शासन टिका हुआ था।

अन्य पश्चिमी देशों में, जनतांत्रिक प्रणाली अब पूर्ण विकसित हो चुकी है, एकाएक सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार नहीं प्रदान किया गया था। धीरे धीरे, सदियों में, उन्होंने अपने सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार दिया है। कहीं कहीं तो अब भी मताधिकार के मामले में रंग एवं जातिभेद बरता जाता है। परंतु भारतीय संविधान ने धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत मानते हुए और व्यक्ति की महत्ता को स्वीकारते हुए, अमीर गरीब के अंतर को, धर्म, जाति एवं संप्रदाय के अंतर को, तथा स्त्री पुरुष के अंतर को मिटाकर प्रत्येक वयस्क नागरिक को देश की सरकार बनाने के लिये अथवा अपना प्रतिनिधि निर्वाचित करने के लिये "मत" (वोट) देने का अमूल्य अधिकार प्रदान किया है।

संविधान लागू होने के बाद पिछले वर्षों में भारतीय जनता ने अपने मताधिकार के पवित्र कर्त्तव्य का समुचित रूप से पालन करके प्रमाणित कर दिया है कि उसे जनतंत्र में पूर्ण आस्था है। इस दृष्टि से भी भारतीय जनतंत्र का विशेष महत्व है।

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