Accountancy, asked by adityajangde480, 2 months ago

जीएसटी परिषद के गठन एवं कार्यों की विवेचना कीजिए आंसर​

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Answered by disha2130
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Hey!!

Explanation:

प्रस्तावना

वस्तु एवं सेवाकर को लागू करना भारत में अप्रत्यक्ष कर के सुधार के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। बड़ी संख्या में केंद्र और राज्यों के दवारा लगाए जा रहे करों को मिलाकर अकेला एक कर बना दिए जाने से करों बहुतायता और दोहरे कराधान की समस्या हल हो जाएगी और एक सामान्य राष्ट्रीय बाजार के लिए रास्ता साफ हो जाएगा। उपभोक्ता की दृष्टि से देखें तो, सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि वस्तुओं पर लगने वाले कर के बोझ में कमी आ सकेगी। आज यह कर बोझ 25 प्रतिशत से 30 प्रतिशत के लगभग है। जीएसटी के लागू किए जाने से भारतीय उत्पाद घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे। किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि इससे आर्थिक विकास पर भी बहुत उत्साहजनक प्रभाव पड़ेगा और सबसे अंत में यह कहना है कि इस कर को लागू करना आसान होगा क्योंकि इसमें पारदर्शिता रहेगी और नीतियां स्वयं तैयार की जा सकेंगी।

उद्भव

2. जीएसटी के बारे में सबसे पहले तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री के दिमाग में आया था जिसको उन्होंने 2007-08 के बजट में व्यक्त किया था। शुरू-शुरू में जीएसटी के 1 अप्रैल, 2010 से लागू किए जाने का विचार था। राज्यों के वित्त मंत्रियों की शक्ति प्राप्त समिति (इ.सी.), जिसने राज्यों में लगाए जाने वाले वैट की रूपरेखा तैयार की थी, से अनुरोध किया था कि वह जीएसटी के लिए भी मार्ग प्रशस्त करे और उसकी रूपरेखा तैयार करे। अधिकारियों का एक संयुक्त कार्यकारी दल, जिसमें राज्य और केंद्र दोनों के प्रतिनिधि थे, का गठन किया गया था, जिसका कार्य जीएसटी के विभिन्न पहलुओं की जांच-परख करना था और अपनी रिपोर्ट, विशेषकर छूट और निर्धारित (थ्रेशोल्ड) सीमा, सेवाओं पर कर लगाना/करारोपण और अंतर्राज्यीय आपूर्तियों पर करारोपण के बारे में, देना था। इनमें परस्पर तथा इनके और केंद्र सरकार के बीच हुए विचारविमर्श के आधार पर इस शक्ति प्राप्त समिति (ई.सी.) ने नवंबर, 2009 में जीएसटी पर अपना प्रथम विमर्श पत्र (एफडीपी) जारी किया था। इसमें प्रस्तावित जीएसटी की विशेषताओं को बताया गया है और अब तक केंद्र और राज्यों के बीच चलने वाली बात-चीत का आधार तैयार किया गया है।

जीएसटी और केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध

3. इस समय वित्तीय शक्तियों का केंद्र और राज्यों के बीच विभाज संविधान में बिल्कुल स्पष्ट किया गया है और एक-दूसरे के क्षेत्र में किसी का कोई दखल नहीं है। केंद्र को वस्तुओं के विनिर्माण/उत्पादन पर (केवल मानव के दवारा प्रयोग में आने वाले शराब, अफीम, मादक पदार्थों आदि को छोड़कर) पर कर लगाने की शक्ति प्राप्त है जबकि राज्यों को वस्तुओं की होने वाली बिक्री पर कर लगाने की शक्ति प्राप्त है। यदि बिक्री अंतर्राज्यीय होती है तब केंद्र को इस पर कर (केंद्रीय बिक्री कर) लगाने की शक्ति प्राप्त है लेकिन इस प्रकार के संपूर्ण कर को मूल राज्य वसूलता है और पूरा का पूरा अपने पास रख लेता है। जहां तक सेवाओं की बात है, सेवाकर को लगाने की शक्ति केवल केंद्र के पास ही है। चूंकि भारत में आयात किए जाने या भारत से निर्यात किए जाने के दौरान वस्तुओं की होने वाली बिक्री पर राज्यों को कोई कर लगाने की शक्ति नहीं है अत: केंद्र ही वस्तुओं के आयात या निर्यात पर कर लगाता है और वही उसे वसूल भी करता है। यह कर अतिरिक्त सीमा शुल्क के रूप जाना जाता है जोकि आधारभूत सीमा शुल्क के अलावा होता है। इस अतिरिक्त सीमाशुल्क (जिसे सामान्यतया सीवीडी और एसएडी के नाम से जाना जाता है) उत्पाद शुल्क, बिक्री कर, राज्य वैट और अन्य करों को संतुलित कर देता है जोकि इसी प्रकार के घरेलू उत्पादों पर लगाए जाते हैं। जीएसटी को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करने की जरूरत पड़ेगी, जिससे कि जीएसटी के लगाने और उसको वसूलने के लिए केंद्र और राज्यों को समवर्ती शक्तियां प्रदान की जा सके|

3.1 जीएसटी को लगाने के लिए केंद्र और राज्यों का समवर्ती क्षेत्राधिकार दिए जाने के लिए एक ऐसे अदवितीय तथा संस्थागत तंत्र की जरूरत पड़ेगी जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि जीएसटी की संरचना और इसके डिजाइन में तथा इसको लागू करने में दोनों और केंद्र और राज्य के दवारा संयुक्त रूप से निर्णय लिए जाएं। इसको कारगर बनाने के लिए ऐसे तंत्र के पास संवैधानिक शक्ति का होना जरूरी है।

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