जाग रे सब रैन बिहाणी, जाए जनम अंजलि का पाणि। घड़ि-घड़ि घड़ियाल बजावे, जे दिन जादू सो बहुरि न आवै॥
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The full poem is:
जागि रे सब रैण बिहाणी।
जाइ जनम अँजुलीको पाणी॥टेक॥
घड़ी घड़ी घड़ियाल बजावै।
जे दिन जाइ सो बहुरि न आवै॥१॥
सूरज-चंद कहैं समुझाइ।
दिन-दिन आब घटती जाइ॥२॥
सरवर-पाणी तरवर-छाया।
निसदिन काल गरासै काया॥३॥
हंस बटाऊ प्राण पयाना।
दादू आतम राम न जाना॥४॥
श्रेणी: भजन
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