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शोक सन्देश
जंगल डायरी: जाना था जिस ओर, वहीं दहाड़ रहा था बाघ
By: neeraj mishra
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mp tiger reserve center,bhopal,mp
बच्चों को बाघ की कहानी सुनाना बहुत आसान है। लेकिन, बाघ के बारे में सही तरीके से वही बता सकता है जिसके सामने बाघ गुर्राया हो
जबलपुर। बच्चों को बाघ की कहानी सुनाना बहुत आसान है। लेकिन, बाघ के बारे में सही तरीके से वही बता सकता है जिसके सामने बाघ गुर्राया हो। जंगल में नौकरी करने वालों के सामने इस तरह के वाकये आते रहते हैं। कह सकते हैं कि जंगल में कई बार मौत के ट्रैक पर चलना होता है। फिर भी वन व वन्यप्राणी संरक्षण करना जिनका काम है, वे हरसम्भव प्रयत्न करते हैं।
वर्ष 2007 में नारंगी क्षेत्र में पोस्टिंग थी। तब मैं रेंजर था और साथ में वनरक्षक दिनेश प्रसाद पांडेय थे। जंगल को बेहतर बनाने के लिए सर्वे कर रहे थे। सर्वे करते हुए डेढ़ घंटे में पहाड़ी और पेड़ों से होते हुए नीचे उतरे थे। दोपहर के 12 बजे थे। हमने कहा खाना खा लेते हैं। खाने के बाद पानी पीने वाले थे कि एेसी गुर्राहट सुनाई दी कि हम लोग बिना पीछे देखे ही 20 मिनट में ऊपर चढ़ गए।
धड़कन इतनी तेज थी कि आपस में भी बात नहीं कर पा रहे थे। एसडीओ शैलेन्द्र रौतेला को जानकारी दी। फिर रेस्क्यू टीम आ गई। टेरिटोरियल के कर्मचारियों से कहा गया कि बाघ सर्च करो, ताकि रिपोर्ट बनाई जा सके। जहां बाघ की दहाड़ सुनाई दी, वहां घनी लेंटाना घास और पहाडि़यों के बीच कुछ पेड़ भी थे। जो कर्मचारी अंदर जा रहा था, उसके हाथ-पांव कांप रहे थे। पांच कर्मचारियों को भेजा गया। डेढ़ घंटे बाद डिप्टी रेंजर ने सभी को बाहर आने की आवाज दी। कर्मचारियों ने पंचनामा बनाया कि उन्होंने बाघ देखा। उसी शाम खबर मिली कि बाघ ने मवेशी पर हमला किया है।
(जैसा कि रिटायर एसडीओ एसके जैन ने पत्रिका जबलपुर के रिपोर्टर अभिमन्यु चौधरी को बताया)