जंगलों की कमी से उत्पन्न हुई समस्या
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जंगलों का इस प्रकार धधकना कई तरह के संकटों को निमंत्रण देता है। जंगलों के जलने से उपजाऊ मिट्टी का कटाव तो तेज़ी से होता ही है, साथ ही जल संभरण का काम भी प्रभावित होता है। वनाग्नि का बढ़ता संकट जंगली जानवरों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर देता है। यूं तो आग लगने के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन कुछ ऐसे वास्तविक कारण हैं, जिनकी वज़ह से गर्मियों में आग का खतरा हमेशा बना रहता है। जैसे-
मज़दूरों द्वारा शहद, साल के बीज जैसे कुछ उत्पादों को इकट्ठा करने के लिये जान-बूझकर आग लगाना।
कुछ मामलों में जंगल में काम कर रहे मज़दूरों, वहाँ से गुज़रने वाले लोगों या चरवाहों द्वारा गलती से जलती हुई कोई चीज वहाँ छोड़ देना।
आस-पास के गाँव के लोगों द्वारा दुर्भावना से आग लगाना।
जानवरों के लिये हरी घास उपलब्ध कराने के लिये आग लगाना।
प्राकृतिक कारणों में बिजली गिरना, पेड़ की सूखी पत्तियों के मध्य घर्षण, तापमान की अधिकता, पेड़-पौधों में शुष्कता आदि शामिल हैं।
लेकिन वर्तमान में वनों में अतिशय मानवीय अतिक्रमण/हस्तक्षेप ने वनों में लगने वाली आग की बारम्बारता को बढ़ाया है। विभिन्न प्रकार के मानवीय क्रियाकलायों जैसे-पशुओं को चराना, झूम खेती, बिजली के तारों का वनों से होकर गुज़रना तथा वनों में लोगों का धूम्रपान करना आदि से ऐसी घटनाओं में वृद्धि हुई है।