जो गरजते हैं , वो बरसते नहीं को आधार बनाकर एक सचित्र
मौलिक कहानी लिखें ।
| शब्द–सीमा – 400 – 500 ]
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Explanation:
भज नाम का एक कुम्हार बहुत सुंदर घड़े, सुराही, गमले आदि बनाता था। उसके बनाए सामान की मांग दूर-दूर तक थी। वह अपना काम पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करता था। उसके पास एक छोटा-सा कमरा था और बाहर बहुत बड़ा चौक। वह अपने सभी मिट्टी के बर्तनों को बनाकर उन्हें चौक में सुखाता था। उसके चौक में बहुत अच्छी धूप आती थी।
कुंभज अपने जीवन में दिन-रात मेहनत कर बेहद खुश रहता था। वह अभी अविवाहित था। उसने सोचा था कि जब मैं मेहनत से कुछ रुपए इकट्ठे कर एक बढ़िया-सा घर बना लूंगा, तभी शादी करूंगा और फिर शादी के लिए रुपए भी तो चाहिए।
सुबह उठते ही वह पूरा चौक साफ करता। उसके बाद फ्रेश होकर व्यायाम करता। उसका बदन भी गठीला और रोबदार था। वह बच्चों से भी बहुत प्यार करता था। बच्चे जब-तब उसके चौक में आकर सुंदर-सुंदर मिट्टी के बनाए बर्तन देखते और कुंभज से उन्हें बनाने की कला सीखते। कुंभज को इन सब में बहुत खुशी मिलती थी। वह बहुत होशियार था। हर बात को गहराई से समझकर ही किसी काम में हाथ डालता था।
कुंभज के बर्तन हमेशा चौक में ही रहते थे, इसलिए उसे उस समय खासी दिक्कत का सामना करना पड़ता, जब बारिश का मौसम शुरू हो जाता या बेमौसम बरसात आती थी। इसके लिए उसने एक बड़ा तिरपाल लाकर रखा हुआ था और जैसे ही मौसम के मिजाज को देखकर उसे लगता कि बारिश होने वाली है, तो वह तुरंत अपने तिरपाल को चौक पर टांग देता। इससे उसके बर्तन बच जाते थे। एक दिन जब वह अपने बर्तनों को बना रहा था तो अचानक ही मौसम के तेवर बदल गए।
आंधी चलने लगी, जोर-से बादल गरजने लगे। उसे लगा कि तेज बारिश होगी और आंधी उसके तिरपाल को हवा में उड़ा ले जाएगी। यह सोचकर वह चौक के कोनों पर मजबूत कीलें ठोक कर तिरपाल को बांधने लगा। कुछ ही देर में उसने चारों कोनों में कीलों से तिरपाल बांध दिया। लेकिन उसने देखा कि जो बादल जोर-जोर से गरज-गरज कर सबको डरा रहे थे, उनमें पानी की एक बूंद तक न थी और उस दिन बारिश की एक बूंद तक नहीं टपकी।
मौसम का ऐसा मिजाज देखकर कुंभज हैरान होकर मुस्कुरा उठा और अपने काम में लग गया। एक दिन कुंभज के पास उसका दूर का भाई अंबुज आया। कुंभज चौक में अंबुज के साथ बातें करता हुआ बर्तन बना रहा था कि तभी जोर से हवाएं चलने लगीं और मौसम का रुख बदल गया। आसमान में बादलों की गजर्ना गूंज उठी। उनकी गूंज से अंबुज भी कांप उठा और बोला, ‘भइया, ऐसा लगता है कि आपके इलाके में मूसलाधार बारिश होगी। क्या आपने इनसे निपटने के लिए कोई इंतजाम किया है?’ अंबुज की बात सुनकर कुंभज बोला, ‘अरे अंबुज घबराने की कोई बात नहीं है। जो गरजते हैं वो बरसते नहीं। अभी कुछ ही देर में मौसम शांत हो जाएगा। हां, मैंने बारिश से बचने के लिए इंतजाम किए हैं।’ कुछ देर बाद ही अंबुज ने बादलों को देखा तो पाया कि सचमुच गरजने वाले बादलों में पानी की एक भी बूंद नहीं थी और सब कुछ शांत हो गया था। अंबुज कुंभज से बोला, ‘हां भाई, तुम सही कहते हो कि जो गरजते हैं वह बरसते नहीं।’ तभी से यह कहावत चली कि ‘जो गरजते हैं वह बरसते नहीं’।