जागरण गीत कविता का मूलभाव लिखिए
पुस्तक = नवभारती
कविता = जागरण गीत
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अब न गहरी नींद में तुम सो सकोगे,
गीत गाकर मै तुम्हे जगाने आ रहा हु।
अतल अस्ताचल तुम्हे जाने ना दूंगा,
अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूँ।
कल्पना में आज तक उड़ते रहे तुम,
साधना से सिहरकर मुड़ते रहे तुम।
अब तुम्हे आकाश में उड़ने न दूंगा,
आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ।
सुख नहीं यह, नींद में सपने संजोना,
दुःख नहीं यह, शीश पर गुरु भार ढोना।
शूल तुम जिसको समझते थे अभी तक,
फूल मै उसको बनाने आ रहा हूँ।
देखकर मझधार को घबरा न जाना,
हाथ ले पतवार को घबरा न जाना।
मै किनारे पर तुम्हे थकने न दूंगा,
पार मै तुमको लगाने आ रहा हूँ।
तोड़ दो मन में कसी सब श्रंखलाएं
तोड़ दो मन में बसी संकीर्णताऐ
बिंदु बनकर मै तुम्हे ढलने न दुगा
सिन्धु बनकर तुमकों उठाने आ रहा हु.
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