(ज) (i) कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
(ii) कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
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कर्मवीर भरत खंडकाव्य के नायक भरत का चरित्र चित्रण —
कर्मवीर भरत खंडकाव्य श्री लक्ष्मी शंकर मिश्र निशंक के द्वारा रचित एक खंडकाव्य है। इस खंड का के नायक दशरथ पुत्र भरत है। इस पूरे खंड काव्य में उनके चरित्र की महिमा का वर्णन हुआ है। उनके चरित्र की विशेषताएं इस प्रकार हैं...
आज्ञाकारी — भरत एक आज्ञाकारी पुत्र और शिष्य हैं, वे अपनी ननिहार में थे कि अचानक दूत द्वारा अयोध्या तुरंत लौटने की गुरु-आज्ञा पाकर तुरंत अयोध्या लौट आते हैं।
लोभ रहित — भरत के मन में राज्य की राजगद्दी को पाने का कोई लोभ नहीं है। अपनी माता कैकेई से यह जानकर कि राम को वनवास उनके कारण मिला है, वे दुखी हो जाते हैं। उन्हें राज गद्दी पाने का कोई लोभ नहीं रहता।
मर्यादापुरुष एवं कर्तव्य के पालक — भरत एक मर्यादा पुरुष की तरह है और वह अपने कर्तव्य पालन को श्रेष्ठ समझते हैंष उनकी विचार में रघुकुल में सबसे बड़ा पुत्र ही राज्य का अधिकारी होता है, इसलिए वह अपने बड़े भ्राता राम को इसके लिए उपयुक्त मानते हैं।
भ्रातृ प्रेमी — उनके मन में अपने भाई राम के प्रति मित्र प्रेम कूट-कूट कर भरा हुआ है और वह राम को वनवास से वापस लौटने के लिए मनाने हेतु उनके पास जाते हैं। राम के ना लौटने पर उनके प्रतिनिधि के रूप में ही उनकी चरण पादुका सिंहासन पर 14 वर्ष तक राज्य का संचालन करते हैं।
सच्चे योगी — राजभवन में रहकर एक वनवासी की तरह जीवन व्यतीत करते हैं। उन्होंने 14 वर्ष तक राज्य सुखों का परित्याग करके कुटी अपना जीवन बिताया और योगी की तरह रहे। उन्होंने नंदीग्राम में कुटी बनाकर राज्य कार्य का संचालन किया।
इस तरह भारत एक आज्ञाकारी पुत्र, आज्ञाकारी शिष्य, कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति, मर्यादा पालक, भ्रातृ प्रेमी और एक सच्चे कर्मयोगी है।
कर्मवीर भरत खंड काव्य की प्रमुख घटनाएं —
कर्मवीर भरत खंडकाव्य की विषय वस्तु और कथावस्तु अत्यंत मर्मस्पर्शी और प्रेरणादायक है। इसकी प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं..
आगमन — प्रथम भाग में दूत के ननिहाल पहुंचने से लेकर भरत के अयोध्या वापस आने तक का वर्णन है और राजा दशरथ की मृत्यु के बाद व्याप्त शोकाकुल वातावरण के प्रभाव का भी वर्णन किया गया है।
राजभवन — इस भाग में भरत-कैकेई मिलन के अलावा भरत को राम के वन गमन की सूचना की जानकारी मिलने का वर्णन किया गया है। भरत और कैकई के बीच संवाद तथा भरत द्वारा कैकेई को उलाहना देने का वर्णन है। साथ यह बताया गया है कि कैकई ने राम को जनसेवा तथा व्यक्तित्व विकास के लिए वन भेजा ना कि किसी लोभ वश होकर।
कौशल्या-सुमित्रा मिलन — इस भाग में भरत अपनी दूसरी माताओं कौशल्या-सुमित्रा से मिलते हैं तथा दोनों माताएं उन्हें आत्मग्लानि से दूर रहने की शिक्षा देती हैं तथा अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
आदर्श व्यक्ति — इस भाग में गुरु वशिष्ठ भरत को संसार की नश्वरता के विषय में बताते हुए उन्हें अपने कर्तव्य पालन के लिए भेजते हैं। भरत पिता का दाह संस्कार करते हैं। गुरु वशिष्ठ भरत के राज तिलक का प्रस्ताव रखते हैं। लेकिन भरत उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर राम को वन से वापस लाने का संकल्प लेकर वन की ओर निकल पड़ते हैं।
वन-गमन — इस भाग में भरत का राम को वापस अयोध्या लाने हेतु वन की ओर गमन का वर्णन है।
राम-भरत मिलन — इस अंतिम भाग में राम का भरत से मिलन होता है। वह राम से वापस अयोध्या लौटने के लिए आग्रह करते हैं। लेकिन राम पिता के दिए वचन का पालन करने के लिए कृतसंकल्प है और अयोध्या वापस लौटने से मना कर देते हैं। तब भरत उनकी चरण पादुका लेकर वापस अयोध्या आ जाते हैं और वो चरण-पादुकायें सिंहासन पर रखकर उनके प्रतिनिधि के रूप में राज्य का संचालन करते हैं और स्वयं नंदीग्राम में कुटी बनाकर रहते हैं और शत्रुघ्न की सहायता से राज्य का संचालन करते हैं।