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. जब नन्हे पाँच-छ: वर्ष का था तब उसके साथ क्या घटना घटी?
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छोटे बच्चों की अपनी दुनिया होती है. अपना ग़ुस्सा, खुशी, दुख तकलीफ़ बताने का उनका अपना तरीक़ा होता है. उनके कुछ इशारे तो हम समझ लेते हैं और उनकी कैफ़ियत का अंदाज़ा लगा लेते हैं. लेकिन ये अंदाज़े हमेशा सटीक नहीं बैठते.
नतीजा ये कि बच्चों का रोना और तेज़ हो जाता है. वो बार-बार ग़ुस्सा करने लगते हैं.
अक्सर बच्चों की ज़िद, फ़रमाइशें और रोना-धोना सुनकर हम सोचते हैं कि काश हम इन बच्चों की अनकही बातें समझ पाते.
अब साइंस आपकी मदद करने की कोशिश कर रही है, ताकि आप अपने बच्चों की बातों और इशारों को अच्छे से समझ सकें.
कई देशों में बच्चों का मिज़ाज समझने के लिए बेबीलैब खुल गई हैं. जहां उन बच्चों पर रिसर्च की जा रही है, जिन्होंने बोलना नहीं सीखा है. जो सिर्फ़ रोना, हंसना या इशारे करना जानते हैं.
क्यों कर रहे शिकवा, ये दुनिया बड़ी अच्छी है
क्या है हमारी ख़ुशी का राज़ और ये क्यों ज़रूरी है
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