जौ जनतेउँ बन बंधु बिछोहू
पिता वचन मनतेउँ नहि ओहू - इस उदाहरण के द्वारा लेखक ने क्या कहना चाहा है ?
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जो जंतुओं वन बंधु बिजोंगो पिता वचन मंत्र हूं नहीं तो इसमें प्रयुक्त रस है क्या
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जौ जनतेउँ बन बंधु बिछोहू पिता वचन मनतेउँ नहि ओहू - इस उदाहरण के द्वारा लेखक ने निम्न विचार प्रकट किए है।
- कविता की परख निबंध में लेखक राम चन्द्र शुक्ल ने कविता में उपमा नियोजन के औचित्य , महत्व , तथा कविता की उपयुक्तता, अनुपयुक्तता का वर्णन किया है।
- इस उदाहरण के द्वारा लेखक यह कहना चाहता है कि एक सच्चा कवि मानव मन को परख सकता है। उसे यह पूरा अनुभव होता है कि किसी विशेष स्थिति में मनुष्य क्या कहता है। इसी संदर्भ में उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास जी की इस चौपाई का वर्णन किया है। यह प्रसंग उस वक्त का है जब लक्ष्मण को शक्ति बाण लग जाता है तथा लक्ष्मण मुर्शित हो जाता है लक्ष्मण को इस अवस्था में देखकर प्रभु श्री राम व्यथित हो जाते है, वे स्वयं को दोषी मानते है व कहते है कि यदि उन्हें भाई के विछोह का आभास होता तो वे पिता का वचन भी नहीं मानते , उन्हें पितृ वचन की तुलना में भाई अधिक प्रिय हैं । राम की स्थिति करुणा जनक है ।
- जिस प्रकार इन पंक्तियों में शोक में व्याकुल मन स्थिति का वर्णन किया है वह प्रशंसनीय है। साथ ही पितृ वचन के परिप्रेक्ष्य में राम के चरित्र पर दोष लगाना एक अपीन हृदय हीनता तथा भाव शून्यता को प्रदर्शित करना है।
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