जाके पैर न फटी लिवाई वह क्या जाने पीर पराई, उति के आधार पर
एक मौलिक कहानी
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मेरे साथ भी जिंदगी अजीबोगरीब खेल खेलती है, बचपन से देखता चला आ रहा हूँ, जब ठीक से पढता नहीं था तो परीक्षा में पास हो जाता और जब पढ़ाई करता तो फेल! जब शरारत करता तो शाबाशी मिलती और नहीं करता तो पिटाई! और ये सिलसिला जब भी नहीं थमा जब मैं शादी योग्य हो गया! और देखिये जिंदगी का खेल जैसे ही इस योग्य हुए तो समाज में वैवाहिक रीतिरिवाज ही बदल गए, जो मान लड़के वालों का था वो लड़की वालों का हो गया और जो काम लड़की वालों का था वो लड़के वालों का हो गया! लडकियां बरात लाने लगीं और लड़के विदा होकर ससुराल जाने लगे.
समाज में ऐसा विषम परिवर्तन और वो भी जब मेरा शादी का नंबर आया तब! अब समाज में सब कुछ बदला बदला सा था और सच बताउं तो शायद हम लड़कों का हाल लड़कियों वाला था, अकसर अखबारो में खबर छपने लगी कि फलां जगह किसी लड़के कुछ लड़कियों ने छेड दिया या फलां जगह किसी लड़के को उठा लिया। अब तो लड़कों को घर से बाहर निकलना दूभर हो चला था। हमारे घर वालों को हम लड़कों की शादी की चिंता रहती और परिवार में रोज ही किसी न किसी लड़की की बातें होतीं.
मैं भी किसी कोने में छिपकर अपनी शादी की बातें सुना करता। कभी शर्माता था तो कभी घबराता था, उस दिन मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही था और मैं बहुत डर भी रहा था क्योंकि पहली बार किसी लड़की वाले ने मुझे देखने आना था मैं अपनी घबराहट को अपनी मुस्कराहट से छिपाने की कोशिश कर रहा था! घबराने के दो मुख्य कारण थे एक तो ऐसा पहली बार ही समाज में हो रहा था और दूसरा मैं ये सोचकर परेशान था कहीं लड़की ने मुझे देखकर मना कर दिया तो लोग क्या कहेंगे। तभी घर में हलचल सी बढ़ी, लड़की वाले आ गए! बताइये मुझे देखने ही आधी बरात ले आये थे। लड़की के मम्मी-पापा, चाचा-ताऊ, मामा-नाना सभी आये थे।