जेल में क्रांतिकारियों पर क्या-क्या अत्याचार होते थेpart kaidi or kokila
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MATRICES
101
A manufacturer produces three products x, y, z which he sells in two markets.
Annual sales are indicated below:
Market Products
I .10,000 2,000 18,000
II .6,000 20,000 8,000
(a) If unit sale prices of x, y and z are Rs 2.50, Rs 1.50 and Rs 1.00, respectively,
find the total revenue in each market with the help of matrix algebra.
(b) If the unit costs of the above three commodities are Rs 2.00, Rs 1.00 and 50
paise respectively. Find the gross profit.
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. स्वाधीनता संग्राम को एक नई दिशा देने वाले वीर सावरकर की जयंती आज देश में उत्साह के साथ मनाई जा रही है। वीर सावरकर को स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े होने के कारण अंग्रेजों द्वारा ‘दोहरे आजीवन कारावास’ की सजा सुनाकर अंडमान-निकोबार की सेल्युलर जेल में रखा गया था। जहां अंग्रेजों द्वारा उन्हें यातनाएं दी गई थी। इस बात का उल्लेख आज पीएम ने मन की बात कार्यक्रम में भी किया। कैसी है सेल्युलर जेल...
- अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर बनी सेल्युलर जेल आज भी काला पानी की दर्दनाक दास्तां सुनाती है। आज भले इसे राष्ट्रीय स्मारक में बदल दिया गया हो लेकिन बटुकेश्वर दत्त और वीर सावरकर जैसे अनेक सेनानियों की कहानी आज भी यह जेल सुनाती है।
- सेल्युलर जेल भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय है। भारत जब गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा था, अंग्रेजी सरकार स्वतंत्रता सेनानियों पर कहर ढा रही थी। हजारों सेनानियों को फांसी दे दी गई, तोपों के मुंह पर बांधकर उन्हें उड़ा दिया गया। कई ऐसे भी थे जिन्हें तिल तिलकर मारा जाता था, इसके लिए अंग्रेजों के पास सेल्युलर जेल का अस्त्र था।
- इस जेल को सेल्युलर इसलिए नाम दिया गया था, क्योंकि यहां एक कैदी से दूसरे से बिलकुल अलग रखा जाता था। जेल में हर कैदी के लिए एक अलग सेल होती थी। यहां का अकेलापन कैदी के लिए सबसे भयावह होता था।
- यहां कितने भारतीयों को फांसी की सजा दी गई और कितने मर गए इसका रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। लेकिन आज भी जीवित स्वतंत्रता सेनानियो के जेहन में कालापानी शब्द भयावह जगह के रूप में बसा है। यह शब्द भारत में सबसे बड़ी और बुरी सजा के लिए एक मुहावरा बना हुआ है।
- अंडमान के पोर्ट ब्लेयर सिटी में स्थित इस जेल की चाहरदीवारी इतनी छोटी थी कि इसे आसानी से कोई भी पार कर सकता है। लेकिन यह स्थान चारों ओर से गहरे समुद्री पानी से घिरा हुआ है, जहां से सैकड़ों किमी दूर पानी के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है। यहां का अंग्रेज सुपरिंडेंट कैदियों से अक्सर कहता था कि जेल दीवार इरादतन छोटी बनाई गई है।
- सबसे पहले 200 विद्रोहियों को जेलर डेविड बेरी और मेजर जेम्स पैटीसन वॉकर की सुरक्षा में यहां लाया गया। उसके बाद 733 विद्रोहियों को कराची से लाया गया। भारत और बर्मा से भी यहां सेनानियों को सजा के बतौर लाया गया था।
- द्वीप होने की वजह से यह विद्रोहियों को सजा देने के लिए अनुकूल जगह समझी जाती थी। उन्हें सिर्फ समाज से अलग करने के लिए यहां नहीं लाया जाता था, बल्कि उनसे जेल का निर्माण, भवन निर्माण, बंदरगाह निर्माण आदि के काम में भी लगाया जाता था। यहां आने वाले कैदी ब्रिटिश शासकों के घरों का निर्माण भी करते थे।
- सेल्युलर जेल का निर्माण 1896 में प्रारंभ हुआ और 1906 में यह बनकर तैयार हुई। इसका मुख्य भवन लाल ईंटों से बना है। ये ईंटें बर्मा से यहां लाई गईं। इस भवन की 7 शाखाएं हैं और बीचोंबीच एक टावर है। इस टावर से ही सभी कैदियों पर नजर रखी जाती थी। ऊपर से देखने पर यह साइकल के पहिए की तरह दिखाई देता है।
- प्रत्येक शाखा तीन मंजिल की बनी थी। इनमें कोई शयनकक्ष नहीं था और कुल 698 कोठरियां बनी थीं। प्रत्येक कोठरी 15×8 फीट की थी, जिसमें तीन मीटर की ऊंचाई पर रोशनदान थे। एक कोठरी का कैदी दूसरी कोठरी के कैदी से कोई संपर्क नहीं रख सकता था।
- जेल में बंद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को बेड़ियों से बांधा जाता था। कोल्हू से तेल पेरने का काम उनसे करवाया जाता था। हर कैदी को तीस पाउंड नारियल और सरसों को पेरना होता था। यदि वह ऐसा नहीं कर पाता था तो उन्हें बुरी तरह से पीटा जाता था और बेडियों से जकड़ दिया जाता था।
- काला पानी जेल में भारत से लेकर बर्मा तक के लोगों को कैद में रखा गया था। एक बार यहां 238 कैदियों ने भागने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें पकड़ लिया गया। एक कैदी ने तो आत्महत्या कर ली और बाकी पकड़े गए। जेल अधीक्षक वाकर ने 87 लोगों को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया था।
- यहां 1930 में भगत सिंह के सहयोगी महावीर सिंह ने अत्याचार के खिलाफ भूख हड़ताल की थी। जेल कर्मचरियों ने उन्हें जबरन दूध पिलाया। दूध जैसे ही पेट के अंदर गया तो उनकी मौत हो गई। इसके बाद उनके शव में एक पत्थर बांधकर उन्हें समुद्र में फेंक दिया गया था।
- अंग्रेजों द्वारा अमानवीय अत्याचार करने के कारण 1930 में यहां कैदियों ने भूख हड़ताल कर दी थी, तब महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसमें हस्तक्षेप किया। 1937-38 में यहां से कैदियों को स्वदेश भेज दिया गया था।
- जापानी शासकों ने अंडमान पर 1942 में कब्जा किया और अंग्रेजों को वहां से मार भगाया। उस समय अंग्रेज कैदियों को सेल्युलर जेल में बंद कर दिया गया था। उस दौरान नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भी वहां का दौरा किया था। 7 में से 2 शाखाओं को जापानियों ने नष्ट कर दिया था।
- द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद 1945 में फिर अंग्रेजों ने यहां कब्जा जमाया।
भारत को आजादी मिलने के बाद इसकी दो और शाखाओं को ध्वस्त कर दिया गया। शेष बची तीन शाखाएं और मुख्य टावर को 1969 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया। 1963 में यहां गोविन्द वल्लभ पंत अस्पताल खोला गया। वर्तमान में यह 500 बिस्तरों वाला अस्पताल है।
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