जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह।।2।। का तात्पर्य
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जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह। 'रहिमन' मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह॥ धन्य है मीन की अनन्य भावना! सदा साथ रहने वाला जल मोह छोड़कर उससे विलग हो जाता है, फिर भी मछली अपने प्रिय का परित्याग नहीं करती, उससे बिछुड़कर तड़प-तड़पकर अपने प्राण दे देती है।
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अर्थ : इस दोहे में रहीम दास जी ने मछली के जल के प्रति घनिष्ट प्रेम को बताया है। वो कहते हैं मछली पकड़ने के लिए जब जाल पानी में डाला जाता है तो जाल पानी से बाहर खींचते ही जल उसी समय जाल से निकल जाता है। परन्तु मछली जल को छोड़ नहीं सकता और वह पानी से अलग होते ही मर जाता है।
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