जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँडति छोह।।2
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रहीम का एक दोहा है : जाल परे जल जात बहि तजि मीनन को मोह , रहिमन मछरी नीर को तऊ न छांड़ति छोह। रहीम कहते हैं कि जब कोई मछुआरा मछली पकड़ता है , तो जैसे ही वह जाल को बाहर निकालता है - पानी मछली के प्रेम को भूलकर , उनको तड़पती छोड़कर जाल से बाहर निकल जाता है। ... इसलिए जीवन में प्रेम की अविरल धारा प्रवाहित होनी ही चाहिए।
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