जामुन का पेड़ पाठ के आधार पर भारतीय नौकरशाही की विशेषताएं बताइए
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● जीवन परिचय-कृश्नचंदर का जन्म पंजाब के गुजरांकलां जिले के वजीराबाद गाँव में 1914 ई. में हुआ। इनकी प्राथमिक शिक्षा जम्मू एवं कश्मीर के पुंछ क्षेत्र में हुई। 1930 ई. में वे उच्च शिक्षा के लिए लाहौर आ गए तथा फॉरमेन क्रिश्चियन कॉलेज में प्रवेश लिया। 1934 ई. में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए किया। इसके बाद ये फिल्म जगत से जुड़ गए और अंत तक मुंबई में ही रहे। इन्हें साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया। इनका निधन 1977 ई. में हुआ।
● रचनाएँ-इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
कहानी-संग्रह-एक गिरजा-ए-खंदक, यूकेलिप्ट्स की डाली।
उपन्यास-शिकस्त, जरगाँव की रानी, सड़क वापस जाती है, आसमान रौशन है, एक गधे की आत्मकथा, अन्नदाता, हम वहशी हैं, जब खेत जागे, बावन पत्ते, एक वायलिन समंदर के किनारे, कागज की नाव, मेरी यादों के किनारे।
● साहित्यिक विशेषताएँ-प्रेमचंद के बाद जिन कहानीकारों ने कहानी विधा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया, उनमें कृश्नचंदर का नाम महत्वपूर्ण है। इनका प्रगतिशील लेखक संघ से गहरा संबंध था। इस विचारधारा का असर इनके साहित्य पर भी मिलता है। ये उन लेखकों में हैं, जिन्होंने लेखन को ही रोजी-रोटी का सहारा बनाया।
कृश्नचंदर ने उपन्यास, नाटक, रिपोर्ताज और लेख भी बहुत से लिखे हैं, लेकिन उनकी पहचान कहानीकार के रूप में अधिक हुई है। महालक्ष्मी का पुल, आईने के सामने आदि उनकी मशहूर कहानियाँ हैं। उनकी लोकप्रियता इस कारण भी है कि वे काव्यात्मक रोमानियत और शैली की विविधता के कारण अलग मुकाम बनाते हैं। कृश्नचंदर उर्दू कथा -साहित्य में अनूठी रचनाशीलता के लिए बहुचर्चित रहे हैं। वे प्रगतिशील और यथार्थवादी नजरिए से लिखे जाने वाले साहित्य के पक्षधर थे।
पाठ का सारांश
‘जामुन का पेड़’ कृश्नचंदर की प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कथा है। हास्य-व्यंग्य के लिए चीजों को अनुपात से ज्यादा फैला-फुलाकर दिखलाने की परिपाटी पुरानी है और यह कहानी भी उसका अनुपालन करती है। इसलिए इसकी घटनाएँ अतिशयोक्तिपूर्ण और अविश्वसनीय लगने लगती हैं। विश्वसनीयता ऐसी रचनाओं के मूल्यांकन की कसौटी नहीं हो सकती। प्रस्तुत पाठ यह स्पष्ट करता है कि कार्यालयी तौर-तरीकों में पाया जाने वाला विस्तार कितना निरर्थक और पदानुक्रम कितना हास्यस्पद है। यह व्यवस्था के संवेदनशून्य व अमानवीयता के रूप को भी बताता है।
रात को चली आँधी में सचिवालय के पार्क में जामुन का पेड़ गिर गया। सुबह माली ने देखा कि उसके नीचे एक आदमी दबा पड़ा है। उसने यह सूचना तुरंत चपरासी को दी। इस तरह मिनटों में दबे आदमी के पास भीड़ इकट्ठी हो गई। क्लकों को रसीले जामुनों की याद आ रही थी, तभी माली ने आदमी के बारे में पूछा। उन्हें उस आदमी के जीवित होने में संदेह था, तभी वह दबा आदमी बोल पड़ा। माली ने पेड़ हटाने का सुझाव दिया, परंतु सुपरिंटेंडेंट ने अपने ऊपर के अधिकारी से पूछने की बात कही। इस तरह बात डिप्टी सेक्रेटरी, ज्वांइट सेक्रेटरी, चीफ सेक्रेटरी, मिनिस्टर के पास पहुँची। मंत्री ने चीफ सेक्रेटरी से कुछ कहा और उसी क्रम में बात नीचे तक पहुँची और फाइल चलती रही।
दोपहर को भीड़ इकट्ठी हो गई। कुछ मनचले क्लर्क सरकारी इजाजत के बिना पेड़ हटाना चाहते थे कि तभी सुपरिंटेंडेंट फाइल लेकर भागा-भागा आया और कही कि यह काम कृषि विभाग का है। वह उन्हें फाइल भेज रहा है। कृषि विभाग ने पेड़ हटवाने की जिम्मेदारी व्यापार विभाग पर डाल दी। व्यापार विभाग ने कृषि विभाग पर जिम्मेदारी डालकर अपना पल्ला झाड़ लिया। दूसरे दिन भी फाइल चलती रही। शाम को इस मामले को हॉर्टीकल्चर विभाग के पास भेजने का फैसला किया गया, क्योंकि यह फलदार पेड़ है।
रात को माली ने दबे हुए आदमी को दाल-भात खिलाया, जबकि उसके चारों तरफ पुलिस का पहरा था। माली ने उसके परिवार के बारे में पूछा तो दबे हुए आदमी ने स्वयं को लावारिस बताया। तीसरे दिन हॉर्टीकल्चर विभाग से जवाब आया कि आजकल ‘पेड़ लगाओ’ स्कीम जोर-शोर से चल रही है। अत: जामुन के पेड़ को काटने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
एक मनचले ने आदमी को काटने की बात की। इससे पेड़ बच जाएगा। दबे हुए आदमी ने इस पर आपत्ति की कि ऐसे तो वह मर जाएगा। आदमी काटने वाले ने अपना तर्क दिया कि आजकल प्लास्टिक सर्जरी उन्नति कर चुकी है। यदि आदमी को बीच में से काटकर निकाल लिया जाए तो उसे प्लास्टिक सर्जरी से जोड़ा जा सकता है। इस बात पर फाइल मेडिकल विभाग भेजी गई। वहाँ से रिपोर्ट आई कि सारी जाँच-पड़ताल करके पता चला कि प्लास्टिक सर्जरी तो हो सकती है, किंतु आदमी मर जाएगा। अत: यह फैसला रद्द हो गया।
रात को माली ने उस आदमी को बताया कि कल सभी सचिवों की बैठक होगी। वहाँ केस सुलझने के आसार हैं। दबे हुए आदमी ने गालिब का एक शेर सुनाया
⠀⠀⠀⠀⠀⠀हिन्दी साहित्य के आलोचक वीरेन्द्र यादव ने कहा, 'यह बहुत दुर्भायपूर्ण है कि इस कहानी को हटाया गया जबकि इस कहानी के जरिये कृष्ण चंदर ने सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए नौकरशाही पर सटीक व्यंग्य किया है।
⠀⠀⠀⠀ सीआईसीएसई की पूर्व सिटी कोआर्डिनेटर माला मेहरा ने कहा, 'सीआईएससीई ऐसा करता रहता है। अक्सर जब पाठ ज्यादा होते हैं तो एक-दो पाठों से प्रश्न नहीं पूछे जाते।
⠀⠀⠀⠀इस बार हिन्दी में ऐसा किया गया है। इसमें ऐसा कुछ खास नहीं है कि कारण बताया जाए कि कहानी को क्यों हटाया गया।
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~hope it helps