Hindi, asked by ravindrakumar9759592, 8 months ago

जौं न होत जग जनम भरत को। सकल धरम धुर धरनि धरत को।।
कबि कुल अगम भरत गुन गाथा। को जानइ तुम्ह बिनु रघुनाथा।।
लखन राम सियँ सुनि सुर बानी। अति सुखु लहेउ न जाइ बखानी।।
इहाँ भरतु सब सहित सहाये। मन्दाकिनी पुनीत
नहाये।।
सरित समीप राखि सब लोगा। मागि मातु गुर सचिव नियोगा।।​

Answers

Answered by aashukumarisanju
1

Answer:

km se km ye to btaiye ki krna kya h question m

Explanation:

plzztell........

Answered by bhatiamona
2

तुलसीदासकृत रामचरित मानस की इन चौपाइयों का भावार्थ इस तरह है :

जौं न होत जग जनम भरत को। सकल धरम धुर धरनि धरत को।।

कबि कुल अगम भरत गुन गाथा। को जानइ तुम्ह बिनु रघुनाथा।।

भावार्थ : तुलसीदास कहते हैं कि यदि जगत में भरत का जन्म नहीं हुआ होता तो इस पूरी पृथ्वी पर धर्म की धुरी को कौन धारण करता। हे रघुनाथ जी कवियों के अगम अर्थात कवियों के कल्पनाओं से परे श्री भरत जी के गुणों को आपके अलावा और कौन अधिक जान सकता है।

लखन राम सियँ सुनि सुर बानी। अति सुखु लहेउ न जाइ बखानी।।

इहाँ भरतु सब सहित सहाये। मन्दाकिनी पुनीत नहाये।।

भावार्थ : तुलसीदास कहते हैं कि श्रीरामचंद्र, लक्ष्मण और सीताजी ने देवताओं की वाणी सुनी तो उन्हें अत्यंत आनंद हुआ। वैसे आनंद का वर्णन नहीं किया जा सकता। भरत जी ने अपने सारे समाज के साथ वहीं पवित्र मंदाकिनी नदी में स्नान किया।

सरित समीप राखि सब लोगा। मागि मातु गुर सचिव नियोगा।।​

चले भरतु जहँ सिय रघुराई। साथ निषादनाथु लघु भाई॥

भावार्थ : तुलसीदास कहते हैं कि फिर सबको नदी के निकट ठहरा कर भरतजी अपनी मातओं, गुरु और मंत्री की आज्ञा लेकर निषादराज और शत्रुघ्न को साथ लेकर उस जगह की ओर चल दिए, जहाँ श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण थे।

Similar questions