Hindi, asked by annashaji84, 1 month ago

जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है उन सबके प्रति उत्कंठापूर्ण आनंद उत्साह के अन्तर्गत लिया जाता है। कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं। साहित्य-मीमांसकों ने इसी दृष्टि से युद्धवीर, दानवीर, दयावीर इत्यादि भेद किए है। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यन्त प्राचीन काल से पड़ता चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुँचते हैं। पर केवल कष्ट या पीड़ा सहन करने के साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता। उसके साथ आनन्दपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कंठा का योग चाहिए।
1. गद्यांश में प्रस्तुत "साहित्य-मीमांसक" का मतलब क्या है?
(a) साहित्यिक आलोच
(b) साहित्य में रुचि रखने वाले
(c) साहित्य के पंडित
(d) साहित्य प्रेमी
2. उत्कंठापूर्ण आनन्द किसके अन्तर्गत लिया जाता है?
(a) वीरता के अन्तर्गत
(b) उत्साह के अन्तर्गत
(c) युद्ध के अन्तर्गत
(d) दान के अन्तर्गत
3. इस अनुच्छेद में किस स्थायी भाव की चर्चा की गयी है?
(a) वीरता
(b) उत्साह
(c) आनंद
(d) तीनों नहीं
4. वीरता का चरम उत्कर्ष किस स्थिति में पाया जाता है?
(a) पीड़ा सहने के साहस में
(b) आनन्दपूर्ण प्रयत्न में
(c) दोनों स्थितियों में
(d) तीनों नहीं है।

Answers

Answered by jaflavk
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Answer:1st question answer-option (b)

             2nd question answer-option(b)

             3rd question answer-option(a)

             4th question answer-option(b)

Answered by chamilmajumder
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Answer:

  1. गद्यांश में प्रस्तुत साहित्य-मीमांसक का मतलब होता हिअ साहित्य मे रुचि रखने वाले।
  2. उत्कंठापूर्ण आनन्द उत्साह के अन्तर्गत लिया जाता है। सन्दर्भ पंक्ति - जिन कर्मो में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, उन सबके प्रति उत्कंठापूर्ण आनंद उत्साह के अन्तर्गत लिया जाता है।
  3. प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव होता है। इनकी संख्या 10 है। रति, हास, शोक, उत्साह, क्रोध, भय, जुगुप्सा (घृणा), विस्मय, शम (निर्वेद), वत्सल स्थायी भाव हैं।
  4. पीड़ा सहने के साहस में - साहित्य-मीमांसकों ने इसी दृष्टि से युद्धवीर, दानवीर, दयावीर इत्यादि भेद किए है। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यन्त प्राचीन काल से पड़ता चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुँचते हैं।

Explanation:

  1. गद्यांश में प्रस्तुत साहित्य-मीमांसक का मतलब होता हिअ साहित्य मे रुचि रखने वाले।
  2. उत्कंठापूर्ण आनन्द उत्साह के अन्तर्गत लिया जाता है। सन्दर्भ पंक्ति - जिन कर्मो में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, उन सबके प्रति उत्कंठापूर्ण आनंद उत्साह के अन्तर्गत लिया जाता है।
  3. प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव होता है। इनकी संख्या 10 है। रति, हास, शोक, उत्साह, क्रोध, भय, जुगुप्सा (घृणा), विस्मय, शम (निर्वेद), वत्सल स्थायी भाव हैं।
  4. साहित्य-मीमांसकों ने इसी दृष्टि से युद्धवीर, दानवीर, दयावीर इत्यादि भेद किए है। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यन्त प्राचीन काल से पड़ता चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुँचते हैं।
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