जैनेंद्र कुमार ने अर्थशास्त्र को अनीति शास्त्र क्यों कहा है ?
Answers
Answer: लेखक का मानना है कि बाजार को सार्थकता वह मनुष्य देता है जो अपनी जरूरत को पहचानता है। जो केवल पर्चेजिंग पॉवर के बल पर बाजार को व्यंग्य दे जाते हैं, वे न तो बाजार से लाभ उठा सकते हैं और न उस बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। ये कपट को बढ़ाते हैं जिससे सद्भाव घटता है। सद्भाव नष्ट होने से ग्राहक और बेचक रह जाते हैं। वे एक-दूसरे को ठगने की घात में रहते हैं। ऐसे बाजारों में व्यापार नहीं, शोषण होता है। कपट सफल हो जाता है तथा बाजार मानवता के लिए विडंबना है और जो ऐसे बाजार का पोषण करता है जो उसका शास्त्र बना हुआ है, वह अर्थशास्त्र सरासर औधा है, वह मायावी शास्त्र है, वह अर्थशास्त्र अनीतिशास्त्र है।
Answer:
जब बाजार में कपट और शोषण बढ़ने लगे, खरीददार अपनी पर्चेचिंग पावर के घमंड में दिखावे के लिए खरीददारी करें | मनुष्यों में परस्पर भाईचारा समाप्त हो जाए| खरीददार और दुकानदार एक दूसरे को ठगने की घात में लगे रहें , एक की हानि में दूसरे को अपना लाभ दिखाई दे तो बाजार का अर्थशास्त्र, अनीतिशास्त्र बन जाता है। ऐसे बाजार मानवता के लिए विडंबना है। इसलिए जैनेन्द्र कुमार जी ने अर्थशास्त्र को अनितिशास्त्र कहा है।
Explanation:
Mark as brainalist if it help you