जिन्दगी ने कर लिया स्वीकार अब तो पथ यही है।
अब उफनवे ज्वार का आवेग मदधिम हो चला है|
एक हलका सा धुंधलका थे कही कम हो चला है
यह शिला पिघलने न पिघलने, रास्ता नम हो चला है,
क्या करूँ आकाश का मनुहार, अब तो पथ यही है |
क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,
आज हर नक्षत्र अनुदार अब तो पथ वही है |
वह लड़ाई, जो कि अपने आपसे मैंने लड़ी है,
यह घुटन यह यातना केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेगे द्ववार, अब तो पथ यही है |
1- जिंदगी ने क्या स्वीकार कर लिया है ?
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जिन्दगी ने अब यह स्वीकार कर लिया है कि आगे कुछ भी हो जाए पर फिर भी कभी भी रुकना नहीं है
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