जैन धर्म के तिएसवे टिर्थ्कर थे ?
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Parshvanatha (Pārśvanātha), also known as Parshva (Pārśva) and Paras, was the 23rd of 24 Tirthankaras (ford-maker, teacher) of Jainism. He is the earliest Jain Tirthankara who is generally acknowledged as a historical figure.
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तीर्थंकर शब्द का जैन धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। तीर्थ' का अर्थ है, जिसके द्वारा संसार समुद्र तरा जाए, पार किया जाए और वह अहिंसा धर्म है। जैन धर्म में उन 'जिनों' एवं महात्माओं को तीर्थंकर कहा गया है, जिन्होंने प्रवर्तन किया, उपदेश दिया और असंख्य जीवों को इस संसार से 'तार' दिया। इन 24 तीर्थंकरों ने अपने-अपने समय में धर्ममार्ग से च्युत हो रहे जन-समुदाय को संबोधित किया और उसे धर्ममार्ग में लगाया। जैन धर्म में 24 तीर्थंकर माने गए हैं। उन चौबीस तीर्थंकरों के नाम इस प्रकार प्रसिद्ध हैं-
1.ॠषभनाथ ,
2.अजितनाथ
3.सम्भवनाथ
4.अभिनन्दननाथ
5.सुमतिनाथ
6.पद्मप्रभ
7.सुपार्श्वनाथ
8.चन्द्रप्रभ
9.पुष्पदन्त
10.शीतलनाथ
11.श्रेयांसनाथ
12.वासुपूज्य
13.विमलनाथ
14.अनन्तनाथ
15.धर्मनाथ
16.शान्तिनाथ
17.कुन्थुनाथ
18.अरनाथ
19.मल्लिनाथ
20.मुनिसुब्रनाथ
21.नमिनाथ
22.नेमिनाथ
23.पार्श्वनाथ
24.वर्धमान महावीर
1.ॠषभनाथ ,
2.अजितनाथ
3.सम्भवनाथ
4.अभिनन्दननाथ
5.सुमतिनाथ
6.पद्मप्रभ
7.सुपार्श्वनाथ
8.चन्द्रप्रभ
9.पुष्पदन्त
10.शीतलनाथ
11.श्रेयांसनाथ
12.वासुपूज्य
13.विमलनाथ
14.अनन्तनाथ
15.धर्मनाथ
16.शान्तिनाथ
17.कुन्थुनाथ
18.अरनाथ
19.मल्लिनाथ
20.मुनिसुब्रनाथ
21.नमिनाथ
22.नेमिनाथ
23.पार्श्वनाथ
24.वर्धमान महावीर
surty:
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