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'जानवरों को कष्ट नहीं देना चाहिए', स्पष्ट कीजिए।
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जनवरो को कष्ट नहीं देना चाहिए किउकी जनवर हमारी बहुत मदद करते है जैसे गधा समन उठआ में, मुर्गी एंडआ देती है जिसे इंसानो की खाने मे मदद होती है।
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हर दिन धरती से 100 प्रजातियां खत्म हो जाती हैं. या तो मानव उनके रहने के इलाके खत्म कर देते हैं या उनका तब तक शिकार करते हैं जब तक वह खत्म नहीं हो जाते. क्या चिड़ियाघर या नेशनल पार्क इन्हें खत्म होने से बचा सकते हैं.
जंगली जानवरों को रखना कभी रईसों, राजा महाराजाओं का शौक रहा है. करीब चार हजार साल पहले चीन में शिया महाराजा के पास कुछ जानवर थे. इसके बाद मेसोपोटेमिया के असिरियाई राजा मगरमच्छ रखते थे और कुछ शिकारी चिड़िया पालते. इटली के फ्लोरेंस में मेडीची राजा अपने पार्क में दुर्लभ जानवर रखते थे. ऐसे ही लुडविग 14वें और फिर 1752 में फ्रांस स्टीफन प्रथम ने वियेना में दुनिया का पहला जू टीयरगार्टन शोएनब्रुन बनाया जिसे आज भी देखा जा सकता है.
लेकिन उस समय ऐसा करने का कारण जानवरों का संरक्षण नहीं था. यह संकल्पना आधुनिक जू की है, क्योंकि कई जानवरों के रहने के इलाके कम होने लगे. सात अरब से ज्यादा लोगों के लिए खाने पीने के सामान की जरूरत पड़ती है और इसके लिए लगातार जंगलों को खेतों में बदला जा रहा है और जानवरों के रहने की जगह कम हो रही है.
जंगलों के खत्म होने और जानवरों के रहने की जगह कम होना ही उनकी विलुप्ति का मुख्य कारण है. और बाकी नुकसान जलवायु परिवर्तन के खाते में जाता है, इससे ज्यादा नुकसान ठंडे प्रदेशों में रहने वाले प्राणियों पर होता है. कई बार सीधे ही इंसान इन जानवरों की जान का दुश्मन बन जाता है. दुर्लभ जानवर एशिया अफ्रीका में खाने की प्लेट में सज जाते हैं. रात में अफ्रीका में जब बया पेड़ों पर सोती हैं तो उन पेड़ों को ही जला दिया जाता है ताकि को नुकसान न पहुंचे. फिलहाल पश्चिमी अफ्रीका में हाथियों की संख्या बहुत बढ़ रही है. और यौन उत्तेजना बढ़ाने वाली दवाइयों के लालच में गैंडों की हत्या तभी रुक सकती है जब उनकी हथियारबद्ध देख रेख हो सकेगी.
तो कुल मिला कर इन जानवरों को संरक्षित करने, बचाने का एक ही तरीका बचता है और वह है चिड़ियाघर या फिर राष्ट्रीय वन्य उद्यान. लेकिन आलोचकों का कहना है कि यहां भी जानवरों की रक्षा नहीं, बल्कि उनके साथ अत्याचार ही होता है. जानवरों की रक्षा के लिए बने संगठन पेटा (पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑप एनिमल्स) ने जर्मनी की अर्थशास्त्र मंत्री इल्से आइगनर से मांग की थी कि बाघ को पिंजरे में न रखा जाए. पेटा के कर्मचारी पेटर होएफकन कहते हैं, अगर बाघ के पास मनुष्य पर हमला करने या उससे बचने की संभावना होती है तो वह ऐसा करता है. होएफकन कहते हैं कि बार बार चिंपाजियों या जिराफ का बाहर निकल आना इस बात को साबित करता है कि जानवर बाहर जाना चाहते हैं. उनके लिए चिड़ियाघर का मतलब है, बहुत जयादा सुरक्षा वाली जेल.
सफलता
फ्रैंकफर्ट जूलॉजिकल गार्डन के निदेशक मानफ्रेड नीकिश भी इस बात को मानते हैं कि चिड़ियाघर में रहने वाले जानवर भी आखिरकार हैं तो जंगली ही. एक जंगली जानवर हमेशा जंगली रहता है, भले उसे चिड़ियाघर में रखा गया हो. चाहे कछुआ हो या फिर बाघ, अब उनकी जीवन शैली के हिसाब से उन्हें रखा जाता है. पशु चिकित्सा में बेहतरी के साथ जानवरों पर भी अलग तरह से ध्यान दिया जाने लगा है. आज जानवरों को उनके वातावरण के हिसाब से रखा जाता है. बंद छोटे छोटे पिंजरों में नहीं. अक्सर बढ़िया साफ सफाई और ध्यान दिए जाने के कारण वह सामान्य तौर से ज्यादा जीते हैं. साइबेरियाई बाघ प्रजाति के दो तिहाई बाघ वन्य जीव अभयारण्य या चिड़ियाघरों में पाए जाते हैं. कई बार इन बाघों को फिर जंगल में छोड़ दिया जाता है ताकि इनकी संख्या बढ़े. यह एक सफल नीति है जिससे कई प्रजातियों को फायदा हुआ है. चाहे उत्तरी अफ्रीका के हिरण हों, सिंह के जैसे दिखने वाले दक्षिण अमेरिकी बंदर हों या फिर मध्य या दक्षिण यूरोप में पाए जाने वाले विशेष गिद्ध हों, बिना अभयारण्य के इनकी संख्या नहीं बढ़ सकती थी.
मनुष्य के हिसाब से
चिड़ियाघरों में करीब 130 अभियान चल रहे हैं जिनके तहत खतरे में पड़ी प्रजातियों की संख्या बढ़ाने की कोशिश की जा रही है. हालांकि खतरा इसमें भी कम नहीं है. इसका उदाहरण मलावी में देखने को मिला. वहां के राष्ट्रीय उद्यान में मोसाम्बिक से शेर लाए गए. हालांकि रेंजरों को खुद की रक्षा करने के लिए सैनिकों की तरह प्रशिक्षण दिया गया था और वह इन सिंहों पर लगातार नजर रखे थे. लेकिन वह अवैध शिकारियों को इन सिंहों की हत्या करने से नहीं रोक पाए. सिंह के पंजों के लिए उन्हें मार दिया गया. ताकि चिड़ियाघर जानवरों की रक्षा की जगह बन सकें, बहुत जरूरी है कि जानवरों को उनके इलाके में रहने दिया जाए.
चिड़ियाघरों में जाने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा होती है. मानफ्रेड नीकिश का कहना है कि अगर ये लोग जानवरों को समझना भी सीख जाएं तो वह समझ जाएंगे कि जानवरों को जंगल में रहने की जरूरत है. भले ही चिड़ियाघर जानवरों की रक्षा और उनकी संख्या बढ़ाने के काम नहीं आएं लेकिन इंसान को तो जानवरों की दुनिया के बारे में समझाया ही जा सकता है. साथ ही कई वैज्ञानिक तथ्य भी इनसे पता चलते हैं.
नीकिश कहते हैं कि जानवरों के बारे में पता चलने वाले नए नए तथ्य चिड़ियाघरों को भी बदल रहे हैं. अब कम जानवरों को ज्यादा जगह में रखा जा रहा है. आधुनिक चिड़ियाघरों में जानवरों को उनके प्राकृतिक निवास जैसी जगह में रखा जाता है. हालांकि सभी जानवरों को इससे उतना फायदा नहीं हो पाता. जैसे कि डॉल्फिन या मछलियां जू के मछलीघर में ठीक से नहीं रखी जाती. और कई समुद्री जीवों या मछलियों की संख्या मछलीघरों में बढ़ाना अक्सर मुश्किल होता है.