ज्ञान किसे कहते हैं कबीर के दूसरे शब्द के आधार पर वर्णन कीजिए
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१
गुरु गोविंद दोऊ खडे, काके लागुं पांय ।
बलिहारी गुरु आपने , गोविंद दियो बताय ।।
गुरु और गोविंद (भगवान) दोनो एक साथ खडे हो तो किसे प्रणाम करणा चाहिये – गुरु को अथवा गोविंद को । ऐसी स्थिती में गुरु के श्रीचरणों मे शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रुपी प्रसाद से गोविंद का दर्शन प्राप्त करणे का सौभाग्य हुआ।
२
गुरु गोविन्द दोऊ एक हैं, दुजा सब आकार ।
आपा मैटैं हरि भजैं , तब पावैं दीदार ।।
गुरु और गोविंद दोनो एक ही हैं केवळ नाम का अंतर है । गुरु का बाह्य(शारीरिक) रूप चाहे जैसा हो किन्तु अंदर से गुरु और गोविंद मे कोई अंतर नही है। मन से अहंकार कि भावना का त्याग करके सरल ओऊ सहज होकार आत्म ध्यान करणे से सद्गुरू का दर्शन प्राप्त होगा । जिससे प्राणी का कल्याण होगा । जब तक मन मे मैलरूपी “माई और तू” कि भावना रहेगी तब तक दर्शन नहीं प्राप्त हो सकता ।
३
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष ।
गुरु बिन लखै न सत्य को गुरु बिन मैटैं न दोष ।।
कबीर दास जि कहते है – हे सांसारिक प्राणीयों । बिना गुरु के ज्ञान का मिलना असंभव है । तब टतक मनुष्य अज्ञान रुपी अंधकार मे भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनो मे जकडा राहता है जब तक कि गुरु कि कृपा नहीं प्राप्तहोती । मोक्ष रुपी मार्ग दिखलाने वाले गुरु हैं । बिना गुरु के सत्य एवम् असत्य का ज्ञान नही होता । उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता फिर मोक्ष कैसे प्राप्त होगा ? अतः गुरु कि शरण मे जाओ । गुरु ही सच्ची रह दिखाएंगे ।
४
गुरु समान दाता नहीं , याचक सीष समान ।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दिन्ही दान ।।
संपूर्ण संसार में गुरु के समान कोई दानी नहीं है और शिष्य के समान कोई याचक नहीं है । ज्ञान रुपी अमृतमयी अनमोल संपती गुरु अपने शिष्य को प्रदान करके कृतार्थ करता है और गुरु द्वारा प्रदान कि जाने वाली अनमोल ज्ञान सुधा केवळ याचना करके ही शिष्य पा लेता है
५
गुरु को मानुष जानते, ते नार कहिए अन्ध ।
होय दुखी संसार मे , आगे जम की फन्द ।।
कबीरदास जी ने सांसारिक प्राणियो को ज्ञान का उपदेश देते हुए कहा है की जो मनुष्य गुरु को सामान्य प्राणी (मनुष्य) समझते हैं उनसे बडा मूर्ख जगत मे अन्य कोई नहीं है, वह आखो के होते हुए भी अन्धे के समान है तथा जन्म-मरण के भव-बंधन से मुक्त नहीं हो पाता ।
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कबीरदास जी ने सांसारिक प्राणियो को ज्ञान का उपदेश देते हुए कहा है की जो मनुष्य गुरु को सामान्य प्राणी (मनुष्य) समझते हैं उनसे बडा मूर्ख जगत मे अन्य कोई नहीं है, वह आखो के होते हुए भी अन्धे के समान है तथा जन्म-मरण के भव-बंधन से मुक्त नहीं हो पाता ।
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