Hindi, asked by aishwarya4225, 6 months ago

जापान में स्वामी रामतीर्थ के साथ घटी घटना का उल्लेख करें।
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Answered by jayashreemurgod
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Answer:

स्वामी रामतीर्थ (जन्म: २२ अक्टूबर १८७३ - मृत्यु: १७ अक्टूबर १९०६) वेदान्त दर्शन के अनुयायी भारतीय संन्यासी थे।

दर्शन

वेदान्त व आध्यात्म आधारित हिन्दू दर्शन

कथन

"भारत भूमि मेरा शरीर है, कन्याकुमारी मेरे पैर हैं और हिमालय मेरा सिर"[1]

धर्म

हिन्दू

दर्शन

वेदान्त व आध्यात्म आधारित हिन्दू दर्शनस्वामी रामतीर्थ ने सभी बन्धनों से मुक्त होकर एक संन्यासी के रूप में घोर तपस्या की। प्रवास के समय उनकी भेंट टिहरी रियासत के तत्कालीन नरेश कीर्तिशाह से हुई। टिहरी नरेश पहले घोर अनीश्वरवादी थे। स्वामी रामतीर्थ के सम्पर्क में आकर वे भी पूर्ण आस्तिक हो गये। महाराजा ने स्वामी रामतीर्थ के जापान में होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन में जाने की व्यवस्था की। वे जापान से अमरीका तथा मिस्र भी गये। विदेश यात्रा में उन्होंने भारतीय संस्कृति का उद्घोष किया तथा विदेश से लौटकर भारत में भी अनेक स्थानों पर प्रवचन दिये। उनके व्यावहारिक वेदान्त पर विद्वानों ने सर्वत्र चर्चा की।

स्वामी रामतीर्थ ने जापान में लगभग एक मास और अमेरिका में लगभग दो वर्ष तक प्रवास किया। वे जहाँ-जहाँ पहुँचे, लोगों ने उनका एक सन्त के रूप में स्वागत किया। उनके व्यक्तित्व में चुम्बकीय आकर्षण था, जो भी उन्हें देखता वह अपने अन्दर एक शान्तिमूलक चेतना का अनुभव करता। दोनों देशों में राम ने एक ही संदेश दिया-"आप लोग देश और ज्ञान के लिये सहर्ष प्राणों का उत्सर्ग कर सकते हैं। यह वेदान्त के अनुकूल है। पर आप जिन सुख साधनों पर भरोसा करते हैं उसी अनुपात में इच्छाएँ बढ़ती हैं। शाश्वत शान्ति का एकमात्र उपाय है आत्मज्ञान। अपने आप को पहचानो, तुम स्वयं ईश्वर हो।"

प्रत्यागमन संपादित करें

सन् १९०४ में स्वदेश लौटने पर लोगों ने राम से अपना एक समाज खोलने का आग्रह किया। राम ने बाँहें फैलाकर कहा, भारत में जितनी सभा समाजें हैं, सब राम की अपनी हैं। राम मतैक्य के लिए हैं, मतभेद के लिए नहीं; देश को इस समय आवश्यकता है एकता और संगठन की, राष्ट्रधर्म और विज्ञान साधना की, संयम और ब्रह्मचर्य की।

टिहरी (गढ़वाल) से उन्हें अगाध स्नेह था। वे पुन: यहाँ लौटकर आये। टिहरी उनकी आध्यात्मिक प्रेरणास्थली थी और वही उनकी मोक्षस्थली भी बनी। १९०६ की दीपावली के दिन उन्होंने मृत्यु के नाम एक सन्देश लिखकर गंगा में जलसमाधि ले ली।

रामतीर्थ के जीवन का प्रत्येक पक्ष आदर्शमय था वे एक आदर्श विद्यार्थी, आदर्श गणितज्ञ, अनुपम समाज-सुधारक व देशभक्त, दार्शनिक कवि और प्रज्ञावान सन्त थे।

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