जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार!
भाव स्पष्ट करें
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जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार!
भावार्थ ➲ अपनी प्रसिद्ध कविता ‘बादल राग’ की इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ सोशल वर्क द्वारा की जाने वाली क्रांति के आह्वान का चित्रण कर रहे हैं। कवि के कहने का भाव यह है कि अशक्त भुजाओं और निर्बल शरीर होने के बावजूद भी किसान अधीर होकर क्रांति का आह्वान कर रहा है। क्रांति रूपी बादल का आह्वान उसके कष्टों का हरण कर देगा। इन पूंजीपतियों ने किसान के जीवन के सुख के रस को चुन-चुन लिया है और उसे प्राणहीन कर दिया है। किसान बेहद कमजोर हड्डियों के ढांचे के मात्र ही रह गया है। बादल अब उसे अपने जल की वर्षा से एक नया जीवन देगा। कवि के कहने का भाव यह है कि क्रांति के आगमन से शोषक वर्ग यानी पूंजीपति तो दहल जाते हैं, लेकिन शोषित वर्ग यानी जीवन किसान इसी क्रांति का आह्वान कर उसे बुलाते हैं और उस क्रांति से ही उनका उत्थान होता है।
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