जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा मन निबंध 600
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सनातन धर्म में भोजन को ईश्वर का स्वरूप माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है -’अन्नं ब्रह्म’ अर्थात् अन्न ब्रह्म है। प्राचीन लोकोक्ति है- "जैसा खाए अन्न, वैसा होय मन"। हमारे भोजन का सीधा प्रभाव हमारे चरित्र व मन पर पड़ता है। वर्तमान समय में पहले ही कीटनाशकों के बहुतायत प्रयोग से खाद्य पदार्थ विशुद्ध नहीं बचे हैं, वहीं यदि उनके पकाने एवं ग्रहण करने में भी शुद्धता का ध्यान नहीं रखा जाता है तो यह हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। आज शास्त्रोक्त बातों को रुढ़ियाँ मानकर इनके उल्लँघन करने के परिणामस्वरूप समाज निरन्तर पतन की ओर अग्रसर होता जा रहा है। विडम्बना यह है कि आज की पीढ़ी भोजन बनाने व ग्रहण करने के नियमों तक से अनजान हैं ऐसी स्थिति में उनके द्वारा उन नियमों के पालन की आशा करना व्यर्थ है।
आईए आज हम आपको भोजन से सम्बन्धित कुछ शास्त्रसम्मत नियमों की जानकारी प्रदान करते हैं-
-भगवान को अर्पित किए बिना भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
-गौ ग्रास (गाय का भोजन) निकाले बिना भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
-सामान्य व्यक्तियों को ब्राह्मणों का भोजन एवं पुरोडास (यज्ञ का भाग) ग्रहण नहीं करना चाहिए, केवल पात्र व्यक्ति ही इसके अधिकारी होते हैं।
-बिना स्नान किए, केवल एक वस्त्र में, जूते पहने हुए, चलते-फिरते भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
-केशों से युक्त (जिसमें बाल गिरा हुआ हो), कीट से युक्त (जिसमें मक्खी, कीड़ा इत्यादि गिर गया हो) ऐसा भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
-रजस्वला स्त्री के द्वारा पकाया गया, स्पर्श किया हुआ व परोसा हुआ भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
-दुर्भावना से प्रेरित, अनादर से परोसा गया, व बासी भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
-बिना स्नान किए, क्रोध से, आलस्य से, कामातुर होकर पकाया गया भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
-गर्भहत्या (भ्रूण हत्या) करने वाले का भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
-किसी के लिए घोषित अन्न एवं विद्वानों द्वारा निन्दित भोजन को ग्रहण नहीं करना चाहिए।
-स्वस्थ होते हुए भी बाएँ हाथ से परोसा हुआ, पैर से स्पर्श किया हुआ, क्रोध में परोसा हुआ, सूतक एवं श्राद्ध का भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
-मुख से फ़ूँक मारकर ठण्डा किया हुआ भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
-माँस-मदिरा विकेता,शस्त्र-विक्रेता,चोर,गणिका,धूर्त,मिथ्याभाषी,वधिक,कुत्ता पालने वाले का,चुगली एवं बुराई करने वाले का एवं शत्रु का भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
-ब्राह्मण से बैर रखने वालों का भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
-मल, मूत्र व काम का आवेग होने पर भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
-अभक्ष्य (माँस) को भोजन के रूप में कदापि ग्रहण नहीं करना चाहिए।