जिस प्रकार मुंह से निकली बात और कमान से निकला तीर वापस नहीं आता,उसी प्रकार बीता
हुआ समय वापस नहीं आता । अत: उचित समय पर सही निर्णय लेना ही मानव का परम कर्तव्य है
| विचारपूर्वक आगे बढना ही सफलता का मूलमंत्र है । गलती करके उसका पश्चाताप करना तो एक
गलती के ऊपर दूसरी गलती करना है।
जो बात बीत चुकी,उस पर चिंता करना ,खेद करना,पश्चाताप करना व्यर्थ है ,क्योंकि इससे कोई
लाभ है ही नहीं । यदि पृथ्वीराज मौहम्मद गौरी के विषैले दाँत पहली बार हराते ही तोड देता ,तो
भारत का इतिहास कुछ और ही होता । कैकयी के अविवेकपूर्ण निर्णय से उसे न केवल वैधव्य
झेलना पडा बल्कि सामाजिक निंदा का शिकार भी बनी। उसने पश्चाताप स्वरूप राम को वापस
लाने का प्रयास किया ,
किंतु सब व्यर्थ । रावण जैसे पराक्रमी शिव भक्त राजा ने अविवेक के कारण
सीता का हरण कर लिया , उसकी यही भूल न केवल उसके लिए बल्कि उसके समस्त परिवार के
लिए विनाश का कारण बनी। निष्कर्ष स्वरूप कहा जा सकता है कि बिना सोचे समझे कार्य नहीं
करना चाहिए, क्योंकि उसका परिणाम अमंगलकारी होता है।
प्र 1 मानव का परम कर्तव्य क्या है और बिना विचारे कार्य करने पर क्या होता है? 1
प्र 2 पश्चाताप करना व्यर्थ क्यों है ? 1
प्र 3 अमंगलकारी शब्द में निहित मूलशब्द तथा उपसर्ग अलग कीजिए। 1
प्र4 प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए। 1
प्र 5 रावण के विनाष का क्या कारण था ? 1
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- हम मनुष्य हैं और हम अपनी बुद्धि से सोच व विचार कर निर्णय करते हैं। हमारा प्रथम कर्तव्य क्या है इस पर भी हम विचार करते हैं, नहीं करते तो कर सकते हैं। विचार करने पर हमें ज्ञात होता है कि हमें किसी अदृश्य सत्ता ने बनाया है। माता-पिता अवश्य हमारे जन्म में सहायक हैं परन्तु वह हमारे शरीर की रचना व रोग होने पर उसे ठीक करने के विज्ञान से परिचित नहीं होते। कोई भी माता-पिता यह दावा नहीं करता कि वह अपनी सन्तानों के आत्मा वा शरीर का निर्माता व रचयिता है। अतः हमारे शरीर की रचना, क्योंकि यह नाशवान है अर्थात् मृत्यु को प्राप्त होने वाला होता है, किसी अदृश्य सत्ता से हुई निश्चित होती है। वह सत्ता कैसी है व उसमें क्या गुण हैं, तो हमें अपने शरीर व सृष्टि को देखकर यह निश्चित होता है कि वह सत्ता ज्ञानवान सत्ता है। ज्ञानवान सत्ता जब कोई रचना करती है तो उसे उपादान कारण एवं भौतिक पदार्थों की आवश्यकता होती है जैसे कि एक कुम्हार को मिट्टी की आवश्यकता होती है जिसे रूपान्तरित कर वह नाना प्रकार के उपयोगी सामान बनाता है। इसी प्रकार संसार में विद्यमान ज्ञानवान सत्ता जिसने सृष्टि की रचना की है वह किसी जड़ भौतिक पदार्थ से सृष्टि की रचना करती है। वेद एवं शास्त्रकारों ने इसका विवेचन किया है और सृष्टि का कारण सत्व, रज व तम गुणों वाली सूक्ष्म प्रकृति को बताया है और यह भी बताया है कि यह मूल प्रकृति अनादि व नित्य है एवं यह नाश अर्थात् अभाव को कभी प्राप्त नहीं होती। इस मूल प्रकृति से ही इस सृष्टि अर्थात् सूर्य, चन्द्र, पृथिवी और लोक लोकान्तरों की रचना सहित सृष्टि के पदार्थों से ही हमारे शरीरों की भी रचना हुई हैं। इस सृष्टि की रचना करने वाली सत्ता को ही वेद एवं शास्त्रों में ईश्वर कहा गया है। ईश्वर का अर्थ ऐश्वर्य सम्पन्न व मनुष्यों को ऐश्वर्य देने वाला कहा जाता है।
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Explanation:
> Baaad m voh man aage gya ek shop m aur pocket m Dekha toh 1000rs ghum gye the...phir Uske pass only 500rs the... usne 300rs Ka shirt liya.
• Ab Uske paas 200rs the..usne un 2 frnd's ko Ghar bulaya aur 100-100 rs diye...
• Rajveer ne 1000 rs diye the..pr USS man ne 100 rs diye...1000-100 = 900..
• rajveer = 1000 and Sujit = 500
•Sujit =500-100 =400
•Rajveer = 1000-100=900
400(pending bill to Sujit) + 900 (pending bill to rajveer) + 300(cost of shirt he buyied)
= 1600..
As
rajver = 1000
Sujit = 500
= 1000+500
=1500
To prove:-
(500-100) + (1000-100) + (400 - 100)
Solution:-
(500-100) + (1000-100) + (400 - 100)
===> 400. + 900. + 300
===> 900 + 700
===> 1600
1600 = 1600
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