जिस पृथ्वी में मिले, हमारे पूर्वज प्यारे, उससे हे भगवान! कभी हम रहें न न्यारे। उसमें मिलते समय मृत्यु से नहीं डरेंगे, लोट-लोट कर वही हृदय को शांत करेंगे। कविता और कवि का नाम बताइए
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जिस पृथ्वी में मिले, हमारे पूर्वज प्यारे, उससे हे भगवान! कभी हम रहें न न्यारे। उसमें मिलते समय मृत्यु से नहीं डरेंगे, लोट-लोट कर वही हृदय को शांत करेंगे। कविता और कवि का नाम बताइए:
कविता मातृभूमि और कवि का नाम -मैथिलीशरण गुप्त
मातृभूमि
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि भारत माता की सुंदरता का वर्णन करते हुए कहता है कि भारत माता की दोनों तरफ फैला नीला समुद्र उसकी पोशाक लग रही है। सूर्य और चंद्र उसके मुकुट पर रतन के समान जड़े हुए प्रतीत हो रहे हैं। नदियों का बहना उसके प्रेम का प्रतीक है और भारत भूमि पर चारों तरफ खिले फूल तारामंडल के समान सुशोभित हो रहे हैं।
कवि कहता है कि हे भारत माता तुम्हारी ही मिट्टी में हम पले बढ़ें हैं और इस मिट्टी में ही घुटनों के बल चले हैं। हम तुम्हारी ही मिट्टी में खेले हैं। हमारा जन्म आपकी ही मिट्टी में हुआ है और अंत में हमने इस मिट्टी में ही मिल जाना है।
कवि कहता है कि हे भारत माता तुम्हारा जल अमृत के समान शीतल और सुगंधित है जो हमारी हर थकान को हर लेता है। यहां पर छह ऋतु का प्राकृतिक दृश्य बहुत ही अनुपम और मनोहारी है।
हे मातृभूमि! आपने हमें सब कुछ दिया है हम तुम्हारी ही सेवा में लीन रहना चाहते हैं और तुम्हारी रक्षा के लिए हम अपने प्राण भी दान में देना चाहते हैं। जब भी तुम्हारे ऊपर कोई संकट आएगा तो हम तुम्हारी रक्षा के लिए अपने प्राणों को हाथ में लेकर दुश्मन से लड़ जायेंगे भले ही हम आपके लिए मर मिट जाएं।
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